चुनरी रंग गयी तेरे रंग में।
श्याम रंग में जब
रंग लीनी, रंगे न दूजे रंग में।
प्यार में तेरे जोगन
हो गयी, नाचूँ तेरे संग में।
बंसी मुझे बना लो
कान्हा, रहूँ अधर के संग में।
पागल हो कर प्रेम
में तेरे, भूल गयी रंग ढंग में।
ये जग मुझको रास
न आवे, बिन तेरे बेरंग मैं।
....कैलाश शर्मा
प्रेमपगे सुन्दर भाव....
ReplyDeleteबंसी मुझे बना लो कान्हा, रहूँ अधर के संग में।
ReplyDeleteपागल हो कर प्रेम में तेरे, भूल गयी रंग ढंग में।
जय श्री राधे ! सुन्दर शब्द सुन्दर भाव श्री कैलाश शर्मा जी
अति सुन्दर सर।
ReplyDeleteवाह ।
ReplyDeleteकान्हा के प्रेम रंग में रंगी बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteप्रेम रमग में रंगी भावभीनी रचना। बहुत ही अच्छी लगी।
ReplyDeleteआहा प्रेम रंग में सराबोर
ReplyDeleteप्रेमोल्लास फैलाते भाव।
ReplyDeleteप्रेम एवं भक्ति रंग में रंगी सुंदर और भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteसूर दास जी के पद की यादें ताज़ा हो गयीं आज तो ... बहुत ही सुन्दर ... प्रेम भाव से भरपूर रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत की है आपने। धन्यवाद।
ReplyDeleteप्रेमरस में सराबोर कर दिया आपने सर!इस बार की होली इसी रंग में मनाई जाए!धन्यवाद और अभिनन्दन!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDelete" लाली देखन मैं चली मैं भी हो गई लाल " काश हम भी यह कह पाते । अभी बहुत दूर जाना है ।
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