कभी कभी झूलने लगता मन
होने या न होने के बीच
तुम्हारे अस्तित्व के।
तर्क की कसौटी
उठाती कई प्रश्न चिन्ह
अस्तित्व पर ईश्वर के।
लेकिन नहीं देती साथ
आस्था किसी तर्क का
और पाती तुम्हें साथ
हर एक पल।
होने या न होने के बीच
तुम्हारे अस्तित्व के।
तर्क की कसौटी
उठाती कई प्रश्न चिन्ह
अस्तित्व पर ईश्वर के।
लेकिन नहीं देती साथ
आस्था किसी तर्क का
और पाती तुम्हें साथ
हर एक पल।
क्या है सत्य?
तुम्हारे न होने का तर्क
या आस्था तुम्हारे होने की?
तुम्हारे न होने का तर्क
या आस्था तुम्हारे होने की?
सोचता हूँ लगा दूँ बाज़ी
अस्तित्व पर तुम्हारे होने की,
अगर जीत जाता हूँ,
पाउँगा वह सब कुछ
जो है अतुलनीय
और नहीं रहती कोई आकांक्षा
जिसको पाने के बाद।
और अगर हार जाता हूँ
नहीं होगा कोई पश्चाताप
क्यों कि नहीं खोया कुछ भी
मैंने बाज़ी हार कर।
अस्तित्व पर तुम्हारे होने की,
अगर जीत जाता हूँ,
पाउँगा वह सब कुछ
जो है अतुलनीय
और नहीं रहती कोई आकांक्षा
जिसको पाने के बाद।
और अगर हार जाता हूँ
नहीं होगा कोई पश्चाताप
क्यों कि नहीं खोया कुछ भी
मैंने बाज़ी हार कर।
क्या हानि है लगाने पर बाज़ी
एक बार अपनी आस्था पर
तुम्हारे अस्तित्व के होने पर?
एक बार अपनी आस्था पर
तुम्हारे अस्तित्व के होने पर?
...कैलाश शर्मा
ईश्वर का होना या न होना ये एक ऐसा सवाल है जो हर किसी के मन में एक बार उठता ज़रूर है लेकिन ज़्यादातर परिस्थितयों में आस्था तर्क पर हावी ही रहती है... बहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-12-2014) को "कौन सी दस्तक" (चर्चा-1835) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार..
Deleteविषय तो आस्था और विज्ञानवादियों के बीच सदैव से यही रहा है। लेकिन अापने जिस तरह से आस्था के मूलतत्व के प्रति कवितामयी वर्णन किया है, वह आस्थावान होने के लिए बहुत प्रेरक है। धर्मांतरण, धर्मनिरपेक्षता, साम्प्रदायिकता के बाद अब पीके में धर्म (विशेषकर हिन्दू धर्म) को पाखंड के रूप में परोसने का जो षडयंत्र चल रहा है, शायद यह कवितानुभ्ूाति उसी के बाद उपजी है, और जो बहुत ही प्रेरणादायी है।
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteविज्ञान के पास भी कहां है सारे प्रश्नों के उत्तर। आस्था से तो हमारा मन मजबूत होता है कि कोई है, सर्व शक्तिमान, जो हमें देख रहा है और देखेगा।
ReplyDeleteसचमुच लगाने जैसी है यह बाजी...
ReplyDeleteअपने पास खोने किये कुछ नहीं है ! जीते या हारे मिलेंगे बहुत कुछ ...
ReplyDelete: पेशावर का काण्ड
'अपने पास खोने के लिए' पढ़े
Deleteदिल में संशय रहने पे वो कहाँ मिलता है ... जी जान से बाजी लगाने पर शायद जरूर नज़र आये ...
ReplyDeleteये बाजी सदैव ही फायदे की रहने वाली है ! सुन्दर आध्यात्मिक रचना श्री कैलाश शर्मा जी
ReplyDeleteआस्था तर्क से परे है और सत्य असत्य से भी. विश्वास अविश्वास के अपने अपने तर्क हैं. जिसे सही गलत नहीं कह सकते. दोनों मानसिकता के द्वन्द पर सुन्दर लेखन, बधाई.
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक चिंतन
ReplyDeleteकस्तूरी मृग सी दौड़ है यह...... जहाँ वह है वहाँ हम खोजते नहीं और जहाँ नहीं है वहाँ सर पटकते हैं और उसके होने न होने जैसे प्रश्न उठाते हैं ...... सादर _/\_ सर जी!
ReplyDeleteBirthday Gifts | Birthday Gifts to India Online | Happy Birthday Gift Ideas - Indiagift
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