क्यों करते हो
प्रेम या वितृष्णा
जीवन और मृत्यु से,
जियो जीवन सम्पूर्णता से
हो कर निस्पृह उपलब्धियों से,
रहो तैयार स्वागत को
जब भी दे दस्तक मृत्यु.
रखो अपने मन को मुक्त
भ्रम और संशय से,
पाओगे जीवन में
प्रारंभ निर्वाण का
और मृत्यु में अनुभव
मुक्ति पुनर्जन्म से.
....कैलाश शर्मा
शास्वत सत्य .....
ReplyDeleteमृत्यु में अनुभव
ReplyDeleteमुक्ति पुनर्जन्म से.सच्चाई से परिपूर्ण बेहद सुंदर गहन भाव अभिव्यक्ति।
बहुत सही लिखा है |
ReplyDeleteमैं मरता हूँ कहॉ देह मुझसे यह छूटी जाती है ।
ReplyDeleteपर आत्मा है अमर वही फिर-फिर जगती में आती है।
पर क्या करें होता यही है जीवन से मोह और मृत्यू से डर ।
ReplyDeletebahut sahi ...namste bhaiya
ReplyDeleteनिर्लिप्त भाव से जीना कहाँ आसाँ होता है ... मक्ति शायद मर के ही संभव है ...
ReplyDeleteजन्म मरण के चक्र से निकलने के लिए ही तो निर्वाण की जरुरत है ....
ReplyDeleteबहुत उम्दा ........... सुंदर सन्देश
ReplyDeleteबिलकुल।
ReplyDeletesandesh prad ..
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteआभार
आभार...
Deleteबहुत गहराई है इस रचना में…मृत्यु एक शास्वत सत्य है...जन्म और मृत्यु के बीच की यात्रा जीवन है...
ReplyDeletesatyavachan dada
ReplyDeleteसत्य..
ReplyDeleteइतना आसान कहाँ है निर्लिप्त होना । सुन्दर सन्देश
ReplyDeleteyahi sach hai ....lekin ishwar ne moh maya bhi to soch kar banaya hoga ...!
ReplyDeleteबहुत खूब...............आदरणीय!
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