क्यों करते हो
प्रेम या वितृष्णा
जीवन और मृत्यु से,
जियो जीवन सम्पूर्णता से
हो कर निस्पृह उपलब्धियों से,
रहो तैयार स्वागत को
जब भी दे दस्तक मृत्यु.
रखो अपने मन को मुक्त
भ्रम और संशय से,
पाओगे जीवन में
प्रारंभ निर्वाण का
और मृत्यु में अनुभव
मुक्ति पुनर्जन्म से.
....कैलाश शर्मा