जीवन सतत संघर्ष
कभी अपने से
कभी अपनों से
और कभी परिस्थितियों से,
एक नदी की तरह
जो टकराती राह में
कठोर चट्टानों से
और बढ़ती जाती
लेकर साथ दोनों किनारों
को
अविचल आगे राह में
अपनी मंज़िल सागर की ओर.
आने पर मंजिल
खो देती अपना अस्तित्व
विशाल सागर में,
छोड़ देते साथ किनारे
लेकर सदैव साथ जिनको
की थी यात्रा मंजिल तक.
नहीं है रुकता समय
किसी के चाहने पर,
नहीं होती पूरी सब इच्छायें
कभी किसी जन की,
असंतुष्टि जनित आक्रोश
कर देता अस्थिर मन
और भूल जाते हम
उद्देश्य अपने जन्म का.
...कैलाश शर्मा
कितना कुछ साथ लिए यूँ ही बहता है जीवन ....अर्थपूर्ण पंक्तियाँ
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ।
ReplyDeleteबेहद सुंदर रचना व लेखन , आदरणीय धन्यवाद !
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उम्दा अभिव्यक्ति ..... हकीकत से रूबरू कराती हुई
ReplyDeleteनहीं है रुकता समय
ReplyDeleteकिसी के चाहने पर,
नहीं होती पूरी सब इच्छायें
कभी किसी जन की,
असंतुष्टि जनित आक्रोश
कर देता अस्थिर मन
और भूल जाते हम
उद्देश्य अपने जन्म का.
हकीकत बयान करते सार्थक शब्द
lajawab rachna sir....:-)
ReplyDeleteउम्दा...
ReplyDeletewah umda rachna
ReplyDeleteआभार..
ReplyDeleteजीवन में संघर्ष है तो रस है। जीत की कुशी है हार का गम है। फिर से कडे होने का जज़्बा है।
ReplyDeleteबेहद उम्दा।
ReplyDeleteजीवन यात्रा यूँ ही पूर्ण होती है, कुछ पाकर कुछ खोकर... सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteहमारे जीवन का कड़वा सच .. जिसे कभी झुठला कर , कभी नकार कर और कभी उसे स्वीकार कर जीवन जिए जाते हैं..
ReplyDeleteShbdo na kamal kar dia....kya bat
ReplyDeleteवाकई उद्देश्य भागदौड़ में गौण हो जाता है......
ReplyDeleteअर्थपूर्ण, गहन एवं शाश्वत जीवन दर्शन से रू ब रू कराती बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति ! वाह !
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