Friday, 27 June 2014

जीवन

जीवन सतत संघर्ष
कभी अपने से
कभी अपनों से
और कभी परिस्थितियों से,
एक नदी की तरह
जो टकराती राह में
कठोर चट्टानों से
और बढ़ती जाती
लेकर साथ दोनों किनारों को 
अविचल आगे राह में
अपनी मंज़िल सागर की ओर.

आने पर मंजिल
खो देती अपना अस्तित्व
विशाल सागर में,
छोड़ देते साथ किनारे
लेकर सदैव साथ जिनको
की थी यात्रा मंजिल तक.

नहीं है रुकता समय
किसी के चाहने पर,
नहीं होती पूरी सब इच्छायें
कभी किसी जन की,
असंतुष्टि जनित आक्रोश
कर देता अस्थिर मन
और भूल जाते हम
उद्देश्य अपने जन्म का.


...कैलाश शर्मा 

16 comments:

  1. कितना कुछ साथ लिए यूँ ही बहता है जीवन ....अर्थपूर्ण पंक्तियाँ

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  2. उम्दा अभिव्यक्ति ..... हकीकत से रूबरू कराती हुई

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  3. नहीं है रुकता समय
    किसी के चाहने पर,
    नहीं होती पूरी सब इच्छायें
    कभी किसी जन की,
    असंतुष्टि जनित आक्रोश
    कर देता अस्थिर मन
    और भूल जाते हम
    उद्देश्य अपने जन्म का.
    हकीकत बयान करते सार्थक शब्द

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  4. जीवन में संघर्ष है तो रस है। जीत की कुशी है हार का गम है। फिर से कडे होने का जज़्बा है।

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  5. बेहद उम्दा।

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  6. जीवन यात्रा यूँ ही पूर्ण होती है, कुछ पाकर कुछ खोकर... सुन्दर रचना, बधाई.

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  7. हमारे जीवन का कड़वा सच .. जिसे कभी झुठला कर , कभी नकार कर और कभी उसे स्वीकार कर जीवन जिए जाते हैं..

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  8. Shbdo na kamal kar dia....kya bat

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  9. वाकई उद्देश्‍य भागदौड़ में गौण हो जाता है......

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  10. अर्थपूर्ण, गहन एवं शाश्वत जीवन दर्शन से रू ब रू कराती बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति ! वाह !

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