जब होने लगता
अहसास अंतर्मन को
पाप और पुण्य,
सत्य व असत्य,
कर्म और अकर्म का,
रखने लगता है पाँव
पहली सीढ़ी पर
स्व-मुक्ति की.
...कैलाश शर्मा
अहसास अंतर्मन को
पाप और पुण्य,
सत्य व असत्य,
कर्म और अकर्म का,
रखने लगता है पाँव
पहली सीढ़ी पर
स्व-मुक्ति की.
...कैलाश शर्मा
बहुत अच्छा।
ReplyDeleteअदभुत।
ReplyDeleteकब से होता है होना शुरु
ReplyDeleteये अहसास बस एक
पता यही नहीं होता :)
बहुत सुंदर ।
agree wid dis view....:-)
ReplyDeletevery true...!!
मगर जब तक यह एहसास होना शुरू होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। नहीं ?
ReplyDeleteजरूरत बस शुरुआत की है ... फिर तो प्रभू उसको मार्ग दिखाते हैं ...
ReplyDeleteसच .. मुक्ति बोध होना ही आत्मज्ञान की पहली सीढ़ी है....
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