मैं नहीं रखता अपने साथ
कभी अपना "मैं",
घेर लेता था अकेलापन
जब भी होता मेरे साथ
मेरा "मैं".
बाँट देता सब में
जब भी होने लगता
संग्रह मेरे "मैं" का,
दूर हो जाता
सूनापन अंतस का,
घिरा रहता सदैव
हम से.
....कैलाश शर्मा
कभी अपना "मैं",
घेर लेता था अकेलापन
जब भी होता मेरे साथ
मेरा "मैं".
बाँट देता सब में
जब भी होने लगता
संग्रह मेरे "मैं" का,
दूर हो जाता
सूनापन अंतस का,
घिरा रहता सदैव
हम से.
....कैलाश शर्मा
मैं....का हम में बदलना अच्छा शुभ संकेत होता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteसचमुच जीवन का सार प्रस्तुत करती कविता।
ReplyDelete" जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहिं ।
ReplyDeleteप्रेम - गली अति सॉकुरी जा में दो न समाहिं ॥"
कबीर
काश यह बात समझ पाते लोग तो शायद आज दुनिया में कोई अकेला न होता...
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteमें से हम का सफ़र जितना जल्दी हो उतना अच्छा होता है ...
ReplyDeleteजीवन का सार प्रस्तुत करती कविता।
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