Friday, 20 June 2014

अनवरत यात्रा

सुनिश्चित है जग में
केवल जन्म और मृत्यु
पर कर देते विस्मृत
आदि और अंत को,
समझने लगते शाश्वत
केवल अंतराल को.

जब आता समय
पुनः बदलने का निवास,
सब भौतिक उपलब्धियां
और सम्बन्ध
रह जाते पुराने घर में,
होती यात्रा पुनः प्रारंभ
कर्मों के बोझ के साथ
जहाँ से हुई थी शुरू.


...कैलाश शर्मा 

9 comments:

  1. इसके बावजूद भी भटकाव जारी है।

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  2. पक्का नहीं पता है :)
    बहुत सुंदर ।

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  3. बढ़िया प्रस्तुति व लेखन , आदरणीय कैलाश सर धन्यवाद !
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  4. गति जीवन है , कर्म करेंगे , कभी न मानेंगे हम हार ।

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  5. गहन चिंतन ! सार्थक सृजन !

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  6. यही तो अनवरत यात्रा है.... जहाँ कर्म सबसे महत्वपूर्ण... गहरे भाव के साथ

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  7. बस यही सच है और दुनिया में दिखने वाली गर वास्तु महज एक छलावा ही है, बहुत सुन्दर

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  8. बहुत खूबी से इस चक्र को बताने का प्रयास ...
    विस्मृत भाव फिर भी रहता है मन में हमेशा ...

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  9. जब आता समय
    पुनः बदलने का निवास,
    सब भौतिक उपलब्धियां
    और सम्बन्ध
    रह जाते पुराने घर में,
    होती यात्रा पुनः प्रारंभ
    कर्मों के बोझ के साथ
    जहाँ से हुई थी शुरू.
    गहन चिंतन !

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