सुनिश्चित है जग में
केवल जन्म और मृत्यु
पर कर देते विस्मृत
आदि और अंत को,
समझने लगते शाश्वत
केवल अंतराल को.
जब आता समय
पुनः बदलने का निवास,
सब भौतिक उपलब्धियां
और सम्बन्ध
रह जाते पुराने घर में,
होती यात्रा पुनः प्रारंभ
कर्मों के बोझ के साथ
जहाँ से हुई थी शुरू.
इसके बावजूद भी भटकाव जारी है।
ReplyDeleteपक्का नहीं पता है :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
बढ़िया प्रस्तुति व लेखन , आदरणीय कैलाश सर धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
गति जीवन है , कर्म करेंगे , कभी न मानेंगे हम हार ।
ReplyDeleteगहन चिंतन ! सार्थक सृजन !
ReplyDeleteयही तो अनवरत यात्रा है.... जहाँ कर्म सबसे महत्वपूर्ण... गहरे भाव के साथ
ReplyDeleteबस यही सच है और दुनिया में दिखने वाली गर वास्तु महज एक छलावा ही है, बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत खूबी से इस चक्र को बताने का प्रयास ...
ReplyDeleteविस्मृत भाव फिर भी रहता है मन में हमेशा ...
जब आता समय
ReplyDeleteपुनः बदलने का निवास,
सब भौतिक उपलब्धियां
और सम्बन्ध
रह जाते पुराने घर में,
होती यात्रा पुनः प्रारंभ
कर्मों के बोझ के साथ
जहाँ से हुई थी शुरू.
गहन चिंतन !