जीवन्मुक्त शांत सदा है ज्ञानी, विमल ह्रदय
सर्वत्र है रहता|
हो विहीन वासनाओं से, समरस सभी परिस्थिति में रहता||(१७.११)
The liberated man is always at peace and remains
every where with spotless heart. Free from all
desires, he shines in all circumstances.(17.11)
तन मन से सब कर्म है करते, इच्छा-द्वेष रहित वह
रहता|
स्थिति जिसका चित्त ब्रह्म में, जीवन्मुक्त सदा
वह रहता||(१७.१२)
While indulging in all the activities of body and
heart, the liberated person is free from desires
and malice and is always established in Self.(17.12)
कभी न निंदा या स्तुति करता, न हर्षित या
क्रोधित होता|
ग्रहण त्याग से मुक्त है रह कर, अनासक्त वह मुक्त है होता||(१७.१३)
He neither blames nor praises, neither rejoices
nor becomes angry. He neither gives nor takes
and unattached to desires, he remains liberated.(17.13)
चाहे प्रीत-युक्त स्त्री समीप हो, या मृत्यु समक्ष में स्थित|
जीवन्मुक्त सदा वह ज्ञानी, आत्मानंद में रहता जो स्थित||(१७.१४)
One, who is liberated and established in Self,
is not disturbed on
seeing a beautiful woman
or death.(17.14)
सुख दुःख में जो सम रहता, धन अभाव एक सा
रहता|
ऐसा समदर्शी है जो ज्ञानी, जीवन्मुक्त सदैव वह
रहता||(१७.१५)
He remains equal in happiness and pain, in
success and failure. One who remains equal
in all circumstances, is truly liberated soul.(17.15)
...क्रमशः
....© कैलाश शर्मा