Wednesday, 25 May 2016

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (तीसवीं कड़ी)

                 पन्द्रहवां अध्याय (१५.६-१५.१०)                                                                                  (with English connotation)
सब प्राणी जन को अपने में, सब जन में अपने को जानो|
अहंकार आसक्ति रहित हो, सुख में स्थित अपने को मानो||(१५.६)

Recognise all beings in you and yourself in all 
beings. Renouncing your ego and attachment, be happy.(15.6)

विश्व सृजन होता तुमसे ही, जैसे लहरें बनतीं सागर से|
अपना चैतन्य रूप जानकर, मुक्त हो तुम सब चिंता से||(१५.७)

This universe is created from you, like the waves
created from sea. Knowing your conscious Self,
be free from all worries.(15.7)

इस अनुभव पर निष्ठा रखना, इस पर तुम संदेह न करना|
ज्ञान स्वरुप, प्रकृति परे हो, स्व-आत्म विश्वास है रखना||(१५.८)

Have faith in your experiences and never doubt
it. You are consciousness and beyond nature, so
have faith in your Self.(15.8)

यह शरीर गुणों से आवृत, जन्म मरण को प्राप्त है होता|     
आत्मा न आती जाती है, फिर क्यों तू शोकाकुल होता||(१५.९)

This body, consisting of senses and attributes,
comes, stays and goes. The Soul neither comes
nor goes, so why are you worried.(15.9)

सृष्टि अंत तक यह शरीर हो, अथवा आज नष्ट हो जाए|
तुम केवल चैतन्य रूप हो, तुम्हें न लाभ हानि हो पाए||(१५.१०)

It makes no difference whether your body
remains till the end of ages or is destroyed
right now. You will not gain or lose anything,
as you are pure consciousness.(15.10)

                                              ...क्रमशः
....© कैलाश शर्मा

11 comments:

  1. सुन्दर भाव पद्यानुवाद प्रस्तुति हेतु आभार!

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  2. बहुत ही सुन्दर। हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी मे भी अनुवाद का पुनीत कार्य। आप का आभार आदरणीय।

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  3. सृष्टि अंत तक यह शरीर हो, अथवा आज नष्ट हो जाए|
    तुम केवल चैतन्य रूप हो, तुम्हें न लाभ हानि हो पाए|

    अद्भुत ज्ञान..आभार !

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  4. बहुत सुंदर , ज्ञानवर्धक !

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  5. वाह ... बहुत ही सुन्दर अनुवाद ... गुनी जन की बातों का आनंद आ रहा है ...

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  6. Tum keval chaitanya Roop ho, yahee to samazana hai.

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  7. आत्मा अमर होती है .. बस शारीर रुपी वस्त्र ही बदलते हैं .. बस ये ही बात को समझना है..आपकी ब्लॉग से आध्यात्मिकता की गहराई से समझा जा रहा है ।

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  8. सुंदर पद्यानुवाद

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  9. यह शरीर गुणों से आवृत, जन्म मरण को प्राप्त है होता|
    आत्मा न आती जाती है, फिर क्यों तू शोकाकुल होता||
    सुन्दर , भावनात्मक , आध्यात्मिक ! हिंदी अंग्रेजी अनुवाद इसे और भी प्रभावी बना देता है !! इस पुनीत कार्य के लिए साधुवाद आदरणीय शर्मा जी !!

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  10. सृष्टि अंत तक यह शरीर हो, अथवा आज नष्ट हो जाए|
    तुम केवल चैतन्य रूप हो, तुम्हें न लाभ हानि हो पाए|
    यही तो समझना है।

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