जीवन का
उद्देश्य
प्राप्ति असीम सुख की,
दौड़ते रहते उसके पीछे।
बदल जाती परिभाषा सुख की
व्यक्ति व परिस्थिति अनुसार
लेकिन बदलता नहीं लक्ष्य।
प्राप्ति असीम सुख की,
दौड़ते रहते उसके पीछे।
बदल जाती परिभाषा सुख की
व्यक्ति व परिस्थिति अनुसार
लेकिन बदलता नहीं लक्ष्य।
होता है
मष्तिष्क बचपन में
पवित्र एवं इक्षुक सीखने का,
शीशे का एक रंगीन टुकड़ा
और एक बहुमूल्य हीरा
देता है समान ख़ुशी.
पवित्र एवं इक्षुक सीखने का,
शीशे का एक रंगीन टुकड़ा
और एक बहुमूल्य हीरा
देता है समान ख़ुशी.
जैसे
जैसे होता विस्तार
मष्तिस्क और अनुभवों का,
बढ़ती जाती इच्छायें
ऊंचे होते जाते लक्ष्य
बढ़ती जाती गांठें कुंठाओं की,
दूर होते जाते खुशियों से।
मष्तिस्क और अनुभवों का,
बढ़ती जाती इच्छायें
ऊंचे होते जाते लक्ष्य
बढ़ती जाती गांठें कुंठाओं की,
दूर होते जाते खुशियों से।
स्थिर
करो मन एक लक्ष्य पर
शून्य हो जायें सीमायें समय की,
विलीन हो जायेंगी चिंतायें
जब मुक्त हो जाओगे
खोने या पाने के भय से।
विलीन हो जायेंगी चिंतायें
जब मुक्त हो जाओगे
खोने या पाने के भय से।
....कैलाश
शर्मा
wah...heart touching...
ReplyDelete.सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई
ReplyDeleteआध्यात्म का भाव लिए ... मन को स्थिर कर पाना ही तो मुश्किल होता है ...
ReplyDeleteमुक्त होने का बेहतर प्रयास है।
ReplyDeleteभावभरी रचना ,अति सुंदर
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति .......
ReplyDeleteबहुत सुंदर :)
ReplyDeleteवाह ,बहुत खूब...
ReplyDeletehttp://himkarshyam.blogspot.in
खोने पाने का भय से मुक्त होना ही सार्थकता है जीवन की .
ReplyDeleteगहन भाव कि रचना...
ReplyDeleteजैसे जैसे होता विस्तार
ReplyDeleteमष्तिस्क और अनुभवों का,
बढ़ती जाती इच्छायें
ऊंचे होते जाते लक्ष्य
बढ़ती जाती गांठें कुंठाओं की,
दूर होते जाते खुशियों से।
shashwat saty....:-)
sari posts padh li.......behad hi achchi.......zindagi ki sachai ko bayan karti hui.......:-)