Saturday, 1 February 2014

खुशियाँ

जीवन का उद्देश्य 
प्राप्ति असीम सुख की,
दौड़ते रहते उसके पीछे।
बदल जाती परिभाषा सुख की
व्यक्ति व परिस्थिति अनुसार
लेकिन बदलता नहीं लक्ष्य।

होता है मष्तिष्क बचपन में 
पवित्र एवं इक्षुक सीखने का,
शीशे का एक रंगीन टुकड़ा 
और एक बहुमूल्य हीरा 
देता है समान ख़ुशी.

जैसे जैसे होता विस्तार 
मष्तिस्क और अनुभवों का,
बढ़ती जाती इच्छायें 
ऊंचे होते जाते लक्ष्य
बढ़ती जाती गांठें कुंठाओं की,
दूर होते जाते खुशियों से।

स्थिर करो मन एक लक्ष्य पर 
शून्य हो जायें सीमायें समय की,
विलीन हो जायेंगी चिंतायें
जब मुक्त हो जाओगे 
खोने या पाने के भय से।

....कैलाश शर्मा

12 comments:

  1. .सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई

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  2. आध्यात्म का भाव लिए ... मन को स्थिर कर पाना ही तो मुश्किल होता है ...

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  3. मुक्‍त होने का बेहतर प्रयास है।

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  4. भावभरी रचना ,अति सुंदर

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  5. सुन्दर प्रस्तुति .......

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  6. वाह ,बहुत खूब...
    http://himkarshyam.blogspot.in

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  7. खोने पाने का भय से मुक्त होना ही सार्थकता है जीवन की .

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  8. जैसे जैसे होता विस्तार
    मष्तिस्क और अनुभवों का,
    बढ़ती जाती इच्छायें
    ऊंचे होते जाते लक्ष्य
    बढ़ती जाती गांठें कुंठाओं की,
    दूर होते जाते खुशियों से।
    shashwat saty....:-)
    sari posts padh li.......behad hi achchi.......zindagi ki sachai ko bayan karti hui.......:-)

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