अकेलापन नहीं पर्याय एकांत का,
उदासी का कुहासा
दर्द बीते हुए पलों के
चुभते यादों के दंश
चिंता कल के सपनों की
कब रहने देते अकेले
अकेलेपन को.
एकांत,
स्तिथि परम आनंद की
नहीं उदासी अकेलेपन की,
होता वार्तालाप स्व-आत्म से
अनुभूति शांति और संतुष्टि की,
समाहित विश्व जब अंतस में
नहीं होता कभी अनुभव
अकेलापन एकांत में.
.....कैलाश शर्मा
वाकई। परमानुभूति में ही ऐसी शान्ति सम्भव है।
ReplyDeleteविचारणीय कवित्व।
ReplyDeleteस्व में सर्व ,सर्व में स्व ......शायद अकेला ही है........ सुन्दर कविता ....
ReplyDeleteएकांत में जब खुद से बाते होती है तो एकांत का अनुभव नहीं हो पाता..मन कि भावाभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteजब इंसान आत्मसंतुष्ट हो अपने स्व से एकाकार हो जाता है तो अकेलेपन और एकांत के लिए स्थान बचता ही कहाँ है ! वह तो उस परमानंद को अनुभव करने में ही व्यस्त हो जाता है ! गहन रचना !
ReplyDeleteबहुत ही आपने एकांत को व्याख्यायित किया है....
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति.. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
ReplyDelete-http://himkarshyam.blogspot.in
वाह !
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