Friday, 24 January 2014

अकेलापन नहीं पर्याय एकांत का

अकेलापन नहीं पर्याय एकांत का, 
उदासी का कुहासा 
दर्द बीते हुए पलों के 
चुभते यादों के दंश 
चिंता कल के सपनों की 
कब रहने देते अकेले 
अकेलेपन को.

एकांत,
स्तिथि परम आनंद की 
नहीं उदासी अकेलेपन की,
होता वार्तालाप स्व-आत्म से 
अनुभूति शांति और संतुष्टि की,
समाहित विश्व जब अंतस में 
नहीं होता कभी अनुभव 
अकेलापन एकांत में.

.....कैलाश शर्मा 

9 comments:

  1. वाकई। परमानुभूति में ही ऐसी शान्ति सम्‍भव है।

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  2. विचारणीय कवित्‍व।

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  3. स्व में सर्व ,सर्व में स्व ......शायद अकेला ही है........ सुन्दर कविता ....

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  4. एकांत में जब खुद से बाते होती है तो एकांत का अनुभव नहीं हो पाता..मन कि भावाभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर...

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  5. जब इंसान आत्मसंतुष्ट हो अपने स्व से एकाकार हो जाता है तो अकेलेपन और एकांत के लिए स्थान बचता ही कहाँ है ! वह तो उस परमानंद को अनुभव करने में ही व्यस्त हो जाता है ! गहन रचना !

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  6. बहुत ही आपने एकांत को व्‍याख्‍यायित किया है....

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  7. सुन्दर भावाभिव्यक्ति.. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
    -http://himkarshyam.blogspot.in

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