विस्मृत कर दो अहम् को
जाग्रत करो आकांक्षा
उसे पाने की,
कब है वह दूर तुमसे
झांको तो सही
अपने अंतस में.
धूमिल हो जाता प्रकाश
जग का व नभ का,
फीकी पड़ जाती
रोशनी भी सूरज की,
हो जाता आलोकित जब
प्रकाश स्व अंतस में.
....कैलाश शर्मा
जाग्रत करो आकांक्षा
उसे पाने की,
कब है वह दूर तुमसे
झांको तो सही
अपने अंतस में.
धूमिल हो जाता प्रकाश
जग का व नभ का,
फीकी पड़ जाती
रोशनी भी सूरज की,
हो जाता आलोकित जब
प्रकाश स्व अंतस में.
....कैलाश शर्मा
सच में ! जब अपना मन आत्मज्ञान से आलोकित हो जाता है बाहर का हर प्रकाश स्वयमेव धूमिल हो जाता है ! गहन प्रस्तुति !
ReplyDeleteसही कहा आपने, जब अंतस प्राशित होता है तब बाह्य प्रकाश धूमिल पड़ जाता है , मन को स्परश करती प्रस्तुति!
ReplyDeleteअहम् को दूर हटा स्वयं प्रकाश को जगाये तो सारे तिमिर दूर चले जाते है...गहन भाव,विचारणीय रचना...
ReplyDeletehttp://mauryareena.blogspot.in/2014/01/tisari-duniya.html#comment-form
आत्ममंथन को प्रेरित करती पंक्तियाँ ..... बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteस्वयं के प्रकाश के आगे सब फीके हैं ... प्रेरित करते हैं शब्द .. मोह से पर्दा उठाते शब्द ...
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