Tuesday 21 January 2014

आत्म-ज्ञान

विस्मृत कर दो अहम् को 
जाग्रत करो आकांक्षा 
उसे पाने की,
कब है वह दूर तुमसे 
झांको तो सही
अपने अंतस में.

धूमिल हो जाता प्रकाश 
जग का व नभ का,
फीकी पड़ जाती 
रोशनी भी सूरज की,
हो जाता आलोकित जब 
प्रकाश स्व अंतस में.

....कैलाश शर्मा 

6 comments:

  1. सच में ! जब अपना मन आत्मज्ञान से आलोकित हो जाता है बाहर का हर प्रकाश स्वयमेव धूमिल हो जाता है ! गहन प्रस्तुति !

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  2. सही कहा आपने, जब अंतस प्राशित होता है तब बाह्य प्रकाश धूमिल पड़ जाता है , मन को स्परश करती प्रस्तुति!

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  3. अहम् को दूर हटा स्वयं प्रकाश को जगाये तो सारे तिमिर दूर चले जाते है...गहन भाव,विचारणीय रचना...
    http://mauryareena.blogspot.in/2014/01/tisari-duniya.html#comment-form

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  4. आत्ममंथन को प्रेरित करती पंक्तियाँ ..... बहुत सुंदर

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  5. स्वयं के प्रकाश के आगे सब फीके हैं ... प्रेरित करते हैं शब्द .. मोह से पर्दा उठाते शब्द ...

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