देखते जब स्वप्न
केवल अपने लिये
रह जाता बनके
केवल एक स्वप्न।
मिल कर साथ
देखते जो स्वप्न
सब के लिये,
उतर आता वह
बन कर
एक सम्पूर्ण सत्य।
देखो एक स्वप्न
लेकर सब को साथ।
....कैलाश शर्मा
केवल अपने लिये
रह जाता बनके
केवल एक स्वप्न।
मिल कर साथ
देखते जो स्वप्न
सब के लिये,
उतर आता वह
बन कर
एक सम्पूर्ण सत्य।
देखो एक स्वप्न
लेकर सब को साथ।
....कैलाश शर्मा
सब साथ हों तो स्वप्न की जरूरतें कम हो जाएंगी।
ReplyDeleteपहले सब के साथ मिलकर सपने बनायेंगे
ReplyDeleteफिर साथ मिलकर सपने में सपने देखने जायेंगे :)
बहुत सुंदर !
सुन्दर सन्देश !! आभार
Deleteअर्थपूर्ण विचार .....
ReplyDeleteस्वप्न ही स्वप्न न बन जाए कही .......सुन्दर विचार ....
ReplyDeleteकाफी उम्दा प्रस्तुति.....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-01-2014) को "तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497" पर भी रहेगी...!!!
- मिश्रा राहुल
शुक्रिया...
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति .......
ReplyDeletevery nice .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर , स्वप्न ऐसा जो समावेशी हो तो फिर क्या कहने ..
ReplyDeleteअति सुंदर।
ReplyDeletekitni sundar baat kahi hai apne
ReplyDeleteसच कहा है ... सब के साथ मिलके देखा स्वप्न सब की ताकत से पूरा होता है ... एक और एक ग्यारह हो जाते हैं तब ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसपने तो सपने हैं ...उनका क्या
ReplyDeleteखूबसूरत बात कही है ।
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