असंयमित मन
उठा देता सुनामी
जीवन में,
उत्तंग लहरें
असीमित इच्छाओं की
बहा ले जातीं साथ
सुख और शांति,
छोड़ जातीं महाविनाश
असंतुष्टि का.
कितना कठिन
सामना सुनामी का,
केवल दीवार
संतुष्टि और विवेक की
रोक पाती लहरें
मन के सुनामी की.
....कैलाश शर्मा
उठा देता सुनामी
जीवन में,
उत्तंग लहरें
असीमित इच्छाओं की
बहा ले जातीं साथ
सुख और शांति,
छोड़ जातीं महाविनाश
असंतुष्टि का.
कितना कठिन
सामना सुनामी का,
केवल दीवार
संतुष्टि और विवेक की
रोक पाती लहरें
मन के सुनामी की.
....कैलाश शर्मा
निश्चय ही संतुष्टि और विवेक ही बचे हैं अस्त्र के रूप में जीवन की सुनामी से लड़ने को।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सटीक भी ।
ReplyDeleteअसीमित इच्छाएं के अंत में निराशा ही हाथ लगती है..
ReplyDeleteविवेक और संतुष्टि ही बचने के उपाय है ....
मगर आज की तारिक में क्या यह अस्त्र सभी के पास हैं जीवन की इस सुनामी से लड़ने के लिए ? शायद नहीं।
ReplyDeleteवाकई विवेक और संतुष्टि की इन दीवारों को ही और मजबूत करना होगा यदि मन की सुनामी पर विजय पानी है तो ! बहुत सुंदर रचना !
ReplyDelete" मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।
ReplyDeleteपार ब्रह्म को पाइये मन के ही परतीत ॥"
कबीर
मनुष्य अपनी समस्याओं से बहुत बडा है ।
ReplyDeletebdi vichitra sunami mnn ki hoti hai..koi vaigyanik bhi rahsy smjh pata nhi ...sundar....
ReplyDeleteSANTUSHTI HI SUNDAR OR SVASTH JIVAN KA AADHAR HAI.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeletebilkul sahi kaha...sarthak rachna
ReplyDeleteसहमत हूँ आपकी बात से ... कठिन निश्चय और आत्मबल से थामा जा सकता है भावनाओं के प्रबल वेग को ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बिम्ब प्रयोग किये हैं .... गहन रचना
ReplyDeleteविचारणीय और महत्वपूर्ण... संयम और विवेक मनुष्य जीवन की श्रेष्ठतम पूंजी है...
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सटीक.....
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