अठारहवाँ अध्याय (१८.९१-१८.९५) (With English connotation)
शुभ व अशुभ सभी कर्मों में, जिसका भाव
समान है रहता|
चाहे वह नृप या भिक्षुक हो, वह निष्काम
सुशोभित रहता|| (१८.९१)
Whether king or
beggar, one who is free from
desire and
maintains equanimity in good or bad
acts, excels in
life. (18.91)
सरल रूप, निष्कपट जो योगी, उसको है संकोच
क्या होता?
क्या स्वच्छंद, क्या तत्वज्ञान है,
चरित्रवान योगी जो होता? (१८.९२)
For the Yogi who
is simple and guileless, there is
neither
dissolute behaviour nor virtue. Even the
discrimination
of truth has no meaning for him. (18.92)
तृप्त स्व-रूप में स्थित हो कर, आशा, दुःख
से रहित है रहता|
कौन व्यक्त कर सकता उसको, वह आनंद जो
अनुभव करता|| (१८.९३)
Who can describe
the pleasure of the person, who
is satisfied
being established in self and is free from
pleasure and
pain. (18.93)
वह सो कर भी नहीं है सोता, जाग्रत रह कर
भी न जगता|
स्वप्न देख, न स्वप्न देखता, ज्ञानी पद पद
तृप्त है रहता|| (१८.९४)
The wise man, who is contented in all
circumstances,
is not sleeping even when asleep, is not
awakened
even when awake and does not dream even
when
dreaming. (18.94)
चिंता युक्त भी निश्चिंत है ज्ञानी,
इन्द्रिय युक्त, रहित इन्द्रिय से|
बुद्धि युक्त, निर्बुद्धि है ज्ञानी,
अहंकार युक्त, है मुक्त अहम् से|| (१८.९५)
The Yogi is free from thought even when
thinking,
is without senses among senses, is
without
understanding even while understanding
every
thing and is devoid of any sense of
responsibility
even when endowed with ego. (18.95)
...क्रमशः
...© कैलाश शर्मा
अद्भुत बोध देतीं पंक्तियाँ..भारत का अमर ज्ञान
ReplyDeleteसुंदर भावानुवाद
ReplyDeleteसुंदर.
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