बारहवां अध्याय (१२.५-१२.८)
(with English connotation)
(with English connotation)
आश्रम अनाश्रम, धर्म नियम से, अपने को मैं
रहित मानता|
इन सब का परिणाम देख कर, अपने स्वरुप में स्वयं
धारता||(१२.५)
When I look at the various stages of life and
observe the rules accepted and prohibited by
mind, I stay as I am and I am established in Self.(12.5)
अज्ञान जनित अनुष्ठान कर्मों से, अपने को मैं
मुक्त जानकर|
अपने स्वरुप में स्थित रहता, तत्व का सम्यक रूप
जानकर||(१२.६)
Being aware that
the performance of actions and
rituals is due to ignorance, I remain liberated from
the same. Knowing and recognising the truth
properly, I remain as I am and established in Self.(12.6)
करते हैं चिंतन अचिंत्य का, लेकिन चिंता से
ग्रसित है रहता|
चिंतन भाव से मुक्त है हो कर, अपने स्वरुप में
स्थित रहता||(१२.७)
While thinking about the unthinkable, we in fact
remain engrossed in thought only. Therefore, by
renouncing that thought, I remain established in
Self.(12.7)
जो ज्ञानी आचरण यह करता, पूर्ण रूप वह मुक्त है
होता|
जिसका ऐसा स्वभाव है होता, पूर्ण रूप वह मुक्त
है होता||(१२.८)
One who behaves and acts thus is completely
liberated. One, who is of such nature, is fully
liberated.(12.8)
**बारहवाँ अध्याय समाप्त**
...क्रमशः
....©कैलाश शर्मा
वाह बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteI am blessed to know such words with simple translation.
ReplyDeleteGreat work.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअद्वैत की सुंदर धार..
ReplyDeletenyc
ReplyDeleteकरते हैं चिंतन अचिंत्य का, लेकिन चिंता से ग्रसित है रहता|
ReplyDeleteचिंतन भाव से मुक्त है हो कर, अपने स्वरुप में स्थित रहता
बहुत सुंदर आध्यात्मिक प्रस्तुति !!
adhbhut..padhte gai
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
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