Wednesday, 6 January 2016

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (तेईसवीं कड़ी)

                                    ग्यारहवां  अध्याय (११.५-११.८)
                                            (with English connotation)
चिंता सभी दुखों का कारण, जिसको इसका बोध है होता| 
सुखी, शांत, चिंता विहीन वह, सर्व कामना मुक्त है होता||(११.५)

Worries are the main cause of sufferings and
those who know it are happy, peaceful and free
from worries and are liberated from all desires(11.5)


न मैं तन हूँ, न यह तन मेरा, ज्ञान स्वरुप अपने को मानता|
विस्मृत कर कृत अकृत कर्मों को, जीवन मुक्ति प्राप्त है करता||(११.६)

I am neither body, nor this body is mine. I am pure
knowledge. One, who knows it, gets liberated in
life and forgets the acts done or not done.(11.6)

मैं ब्रह्मा से त्रण तक हूँ सब में, जो यह है निश्चित रूप जानता|
निर्विकल्प, शुचि, शांत वो ज्ञानी, है आसक्ति रहित हो जाता||(११.७)

Knowing definitely that I alone exist from Brahma
to blade of grass, one becomes free from desires,
becomes pure, peaceful and un-attached to everything.(11.7)

नाना आश्चर्य युक्त जग मिथ्या, जिसको इसका बोध है होता|
इच्छा रहित, शुद्ध वह ज्ञानी, परम शांति को प्राप्त है होता||(११.८)

This world full of many wonders does not exist.
One who knows it becomes free from desires,
becomes pure and attains eternal peace.(11.8)

                   **एकादश अध्याय समाप्त**

                                        ...क्रमशः

....©कैलाश शर्मा  

8 comments:

  1. इस आध्यात्मिक यात्रा की हर कड़ी खूबसूरत।अति सुन्दर अनुवाद।

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  2. इस आध्यात्मिक यात्रा की हर कड़ी खूबसूरत।अति सुन्दर अनुवाद।

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  3. Nice job sir,
    Through this we are familiar with this intellectual topic

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  4. Nice job sir,
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  5. नाना आश्चर्य युक्त जग मिथ्या, जिसको इसका बोध है होता|
    इच्छा रहित, शुद्ध वह ज्ञानी, परम शांति को प्राप्त है होता

    सुंदर बोध देती पंक्तियाँ !

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  6. सुंदर और सार्थक

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  7. बहुत सुंदर रचना ! मनुष्य जानता भी है , समझता भी है किन्तु वो हर क्षण हर पल इन सब बातों को भूल जाता है !!

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