Friday, 4 September 2015

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (सातवीं कड़ी)

                                      द्वितीय अध्याय (२.११-२.१५)
                                             (with English summary)


आश्चर्य और नमन है मुझको, जिसका है विनाश न होता|
ब्रह्मा से त्रण तक विनाश पर, विद्यमान सदा वह होता|| (२.११)

I wonder and salute myself, who is not destroyed
and remains even after the destruction of the
whole world from Brahma to the blade of grass.(2.11)

मैं आश्चर्य रूप नमन है मुझको, देहयुक्त अद्वैत हूँ फिर भी|
नहीं कहीं भी आता जाता, आच्छादित करता जग फिर भी||(२.१२)

I wonder and salute myself, who is one and despite
endowed with body, neither comes nor goes anywhere and pervades the entire world with my presence. (2.12)

मैं हूँ विलक्षण नमन है मुझको, नहीं कुशल मेरे सम जग में|
बिन स्पर्श किए ही यह तन, धारण करता रहा हूँ जग मैं||(२.१३)

Amazing and salute to me that there is no one
as clever as me in the world. I am holding all beings
for ever even without touching it with my body.(2.13)

मैं हूँ विलक्षण नमन है मुझको, किंचित मात्र नहीं है जिसका|  
अथवा वाणी मन से जो गोचर, वह सब ही केवल है जिसका||(२.१४)

I wonder and salute to me that nothing in this world
belongs to me. On the other hand whatever may be
referred to by speech or mind all that belongs to me.(2.14)

ज्ञान, ज्ञेय, ज्ञाता ये तीनों, इनका अस्तित्व नहीं चेतन में|
केवल है अज्ञान के कारण, मेरा निष्कलंक रूप देखते इनमें||(२.१५)  

Knowledge, what is to be known and knower do
not exist in reality. Due to ignorance people see
these three in my spotless image.(2.15)

                                            ...क्रमशः

....©कैलाश शर्मा

11 comments:

  1. अद्भुत - भाव - पद्यानुवाद । प्रणम्य - उपक्रम ।

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  2. बहुत सुन्दर ज्ञानार्जन भरी प्रस्तुति हेतु आभार

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  3. अति उत्तम कार्य अपकी लेखनी धन्य है, बधाई आपको

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  4. आनन्द आ जाता है आपके भावों में पढ़ कर ।

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  5. पद्यानुवाद का अंग्रेजी अनुवाद भी बहुत ज्ञानवर्धक है। बहुत सुन्‍दर।

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  6. सार्थक और सराहनीय

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  7. अत्यंत श्रमसाध्य एवं स्तुत्य प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !

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  8. पूर्ण आध्यात्मिक रस स्वाद ... मज़ा आ रहा है ...

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  9. बहुत सुंदर.. अनुपम प्रस्तुति..

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  10. आप की ब्लॉग पढ़ कर इस संसारिकता के बीच कुछ पल आध्यात्म में भी जी लेते है आभार ।

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  11. मैं आश्चर्य रूप नमन है मुझको, देहयुक्त अद्वैत हूँ फिर भी|
    नहीं कहीं भी आता जाता, आच्छादित करता जग फिर भी||
    अप्रतिम !! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय श्री शर्मा जी

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