द्वितीय अध्याय (२.१६-२.२0)
(with English connotation)
(with English connotation)
द्वैत है कारण सभी दुखों का, जो कुछ दिखता सत्य नहीं है|
बोध आत्मा का जब होता, औषधि निवृति की एक वही
है||(२.१६)
In reality duality is the main cause of all sufferings.
The only remedy for this is the realisation that all
that is visible is not real and I am the only spotless
consciousness.(2.16)
मैं तो केवल ज्ञानरूप हूँ, अज्ञान करे मुझमें
गुण कल्पित|
ऐसा है विचार कर के मैं, चैतन्य सनातन रूप में
स्थित||{२.१७)
I am pure consciousness and only due to ignorance
I have attributed qualities to me. In view of this my
existence is eternal and without any cause.(2.17)
न कोई बंधन, न मुक्ति का भ्रम, शांत और
निराश्रय हूँ मैं|
है आश्चर्य की मुझमें स्थित, यह जग भी न स्थित
मुझ में||(२.१८)
I am not afraid of bondage or liberation. I am
peaceful and without any support. It is amazing
that all this world
exists in me, but in reality
even this world does not exist in me.(2.18)
सशरीर यह विश्व न कुछ भी, इसका कोई अस्तित्व
नहीं है|
निर्मल चैतन्य आत्म जब जानो, जग अस्तित्व विलीन
वहीं है||(२.१९)
In reality this world along with body is nothing
and it has no existence. When you realise your
pure Consciousness,
then what else remains
for your imagination.(2.19)
मात्र कल्पना तन व भय हैं, स्वर्ग, नर्क, मोक्ष
व बंधन|
मैं चैतन्य स्वरुप हूँ मेरा इन सब से क्या रहा
प्रयोजन||(२.२०)
The body, fear, heaven, hell, liberation and
bondage are all imaginary. What else is left
to me, who is pure Consciousness.(2.20)
....क्रमशः
....©कैलाश शर्मा
सुंदर आत्मा का ज्ञान..अद्वैत का भास ही मुक्ति है..आभार !
ReplyDeleteसुन्दर ज्ञान गंगा ... आनंद का सागर ...
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत।
ReplyDeleteकैलाश जी आपको बहुत-बहुत साधुवाद इस विरल ग्रन्थ के इतने ग्राह्य रूपांतर के लिये ! आभार आपका !
ReplyDeleteज्ञान की सुंदर व्याख्या
ReplyDeleteउत्कृष्ट
" नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
ReplyDeleteन चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ "
गीता
उत्तम - प्रस्तुति ।
अथाह ज्ञान ....सुन्दर ज्ञान गंगा ... आनंद का सागर ...और सुन्दर एवं रुचिकर प्रस्तुतीकरण आदरणीय शर्मा जी !
ReplyDeleteबहुत ही संदर है आध्यात्म का समुंदर ।
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