Wednesday, 9 September 2015

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (आठवीं कड़ी)

                                      द्वितीय अध्याय (२.१६-२.२0)
                                             (with English connotation)

द्वैत है कारण सभी दुखों का, जो कुछ  दिखता सत्य नहीं है|    
बोध आत्मा का जब होता, औषधि निवृति की एक वही है||(२.१६)

In reality duality is the main cause of all sufferings.
The only remedy for this is the realisation that all
that is visible is not real and I am the only spotless
consciousness.(2.16)

मैं तो केवल ज्ञानरूप हूँ, अज्ञान करे मुझमें गुण कल्पित| 
ऐसा है विचार कर के मैं, चैतन्य सनातन रूप में स्थित||{२.१७)

I am pure consciousness and only due to ignorance
I have attributed qualities to me. In view of this my
existence is eternal and without any cause.(2.17)

न कोई बंधन, न मुक्ति का भ्रम, शांत और निराश्रय हूँ मैं|
है आश्चर्य की मुझमें स्थित, यह जग भी न स्थित मुझ में||(२.१८)

I am not afraid of bondage or liberation. I am
peaceful and without any support. It is amazing
 that all this world exists in me, but in reality
even this world does not exist in me.(2.18)

सशरीर यह विश्व न कुछ भी, इसका कोई अस्तित्व नहीं है|
निर्मल चैतन्य आत्म जब जानो, जग अस्तित्व विलीन वहीं है||(२.१९)  

In reality this world along with body is nothing
and it has no existence. When you realise your
pure  Consciousness, then what else remains
for your imagination.(2.19)

मात्र कल्पना तन व भय हैं, स्वर्ग, नर्क, मोक्ष व बंधन|
मैं चैतन्य स्वरुप हूँ मेरा इन सब से क्या रहा प्रयोजन||(२.२०)

The body, fear, heaven, hell, liberation and
bondage are all imaginary. What else is left
to me, who is pure Consciousness.(2.20)


                                     ....क्रमशः

....©कैलाश शर्मा

9 comments:

  1. सुंदर आत्मा का ज्ञान..अद्वैत का भास ही मुक्ति है..आभार !

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  2. सुन्दर ज्ञान गंगा ... आनंद का सागर ...

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  3. बहुत ही खूबसूरत।

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  4. कैलाश जी आपको बहुत-बहुत साधुवाद इस विरल ग्रन्थ के इतने ग्राह्य रूपांतर के लिये ! आभार आपका !

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  5. ज्ञान की सुंदर व्याख्या
    उत्कृष्ट

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  6. " नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
    न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ "
    गीता
    उत्तम - प्रस्तुति ।

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  7. अथाह ज्ञान ....सुन्दर ज्ञान गंगा ... आनंद का सागर ...और सुन्दर एवं रुचिकर प्रस्तुतीकरण आदरणीय शर्मा जी !

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  8. बहुत ही संदर है आध्यात्म का समुंदर ।

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