आध्यात्मिक
विकास की
पर्वतों
की कंदराओं में
नदियों
के किनारे
गुरु
के सामीप्य में,
नहीं
कभी झांकते
अपने
अंतर्मन में,
नहीं
करते प्रारंभ यात्रा
अपने अन्दर से.
होती
यात्रा प्रारंभ
जब
अन्दर से बाहर,
होते
समर्थ खोजने में
सार
स्व-अस्तित्व का.
अंतस
का प्रकाश
देता
एक नव ज्योति
एक नव
दृष्टि
देखने
को बाह्य जगत
और कर
पाते सुगमता से
आत्मसात
एक वृहद सत्य
स्व-अनुभूति
में.
...कैलाश शर्मा
वाह सुंदर !
ReplyDeleteBahut khoob ...antarman ki yatra ..
ReplyDeleteBahut khoob antarman ki yatra ...
ReplyDeleteहोती है यात्रा प्रारम्भ
ReplyDeleteजब अन्दर से बाहर
होते हैं समर्थ खोजनें में
सार स्व -अस्तित्व का।
अति सुन्दर कविता शर्मा जी।
साहेब तेरी साहेबी घट घट रही समाय| जैसी मेंहदी बीच में लाली रही छुपाय ||
ReplyDeleteअर्थात मेंहदी हरी दिखती है परन्तु उसकी लाली छुपी है | इसी प्रकार यह देह नश्वर है उसके अन्दर शाश्वत चेतना छुपी है | उस चेतना का जो दीदार कर लेता है वह सुगमता से आत्मसात कर लिया |
गहन अर्थपूर्ण रचना ! अति सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना के लिए साधुवाद |
ReplyDelete" यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे ।"
ReplyDeleteनिरन्तर बोध के निकट ले जाने का भरसक प्रयास करने के लिए , हम आपके प्रति कृतज्ञता - ज्ञापित करते हैं । बस ईश्वरीय - अनुकम्पा से आप हमको परोसते रहिए ।
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteसत्य वचन..
ReplyDeleteनहीं कभी झांकते
ReplyDeleteअपने अंतर्मन में,
नहीं करते प्रारंभ यात्रा
अपने अन्दर से.
ऐसा कहा जाता है कि अगर इंसान स्वयं के अंदर झाँक सके तो वो भगवान को पा सकता है लेकिन कौन झांकता है ? किसी ने कहा है कि आदमी को पूरी दुनिया में गलती नजर आ सकती है किन्तु स्वयं की गलती , स्वयं की कमियां नही देख सकता ! आध्यात्मिक यात्रा में आपके साथ चलते हुए मन प्रफुल्लित हो जाता है आदरणीय श्री शर्मा जी !
अंतर्मन की यात्रा ही तो सुख ला सकती है.....सुंदर।
ReplyDeleteSerene lines.
ReplyDeleteयथार्थ यही है।
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteYes, the real insight provides special energy. Meaningful thought.
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