थोड़ी सी ख़्वाहिशें
संतुष्टि उससे जो हाथ में,
अनुभूति खुशियों की
सभी परिस्थितियों में,
जब होने लगता अहसास
नहीं कुछ कमी स्व-उपलब्धि में,
सब कुछ हो जाता अपना
सम्पूर्ण विश्व मुट्ठी में,
हो जाता विस्तृत आयाम
चेतना का
स्वयं की जागरूकता में।
संतुष्टि उससे जो हाथ में,
अनुभूति खुशियों की
सभी परिस्थितियों में,
जब होने लगता अहसास
नहीं कुछ कमी स्व-उपलब्धि में,
सब कुछ हो जाता अपना
सम्पूर्ण विश्व मुट्ठी में,
हो जाता विस्तृत आयाम
चेतना का
स्वयं की जागरूकता में।
...कैलाश शर्मा
हो जाता विस्तृत आयाम
ReplyDeleteचेतना का
स्वयं की जागरूकता में।
बहुत उम्दा शर्मा जी।
हो जाता विस्तृत आयाम
ReplyDeleteचेतना का
स्वयं की जागरूकता में।
बहुत उम्दा शर्मा जी।
सुंदर ।
ReplyDeleteइस अनुभूति की प्रतीति ही सबसे बड़ी उपलब्धि है !
ReplyDeleteजो पास है इसी से इंसान संतुष्ट हो जाए तो जीवन का असल मतलब मिल जाता है ...
ReplyDeleteऔए स्व-जागरूकता इसकी शुरुआत है ... सुन्दर रचना ...
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !
यह अनुभूति ही है ईश्वर से समीपता।
ReplyDeleteजब होने लगता अहसास
ReplyDeleteनहीं कुछ कमी स्व-उपलब्धि में,
सब कुछ हो जाता अपना
ये तीन पंक्तियाँ उठाई हैं मैंने आपकी पोस्ट में से और मुझे लगता है ये जीवन का सार हैं ! बहुत कुछ कहती हैं , समझाती हैं लेकिन कोई समझना तो चाहे ?
कैलाश जी ! हम तो इस उपलब्धि के आस - पास भी नहीं हैं फिर भी अभी हमने आशा का दामन छोडा नहीं है ।
ReplyDeletenicely expressed!
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