अब न चढ़े कोई भी रंग सखी री।
अपने रंग रंगी कान्हा ने, चढ़े न दूजो
रंग सखी री।
तन का रंग तो छुट भी जाये, मन का रंग न धुले सखी री।
अब तो श्याम रंग ही भावे, श्याम रंग मैं रंगी सखी री।
कोई जतन नजर न आवे, कैसे छूटे यह रंग सखी री।
क्यों खेलन को आयी होली, कैसे घर मैं जाऊँ सखी री।
तन का रंग तो छुट भी जाये, मन का रंग न धुले सखी री।
अब तो श्याम रंग ही भावे, श्याम रंग मैं रंगी सखी री।
कोई जतन नजर न आवे, कैसे छूटे यह रंग सखी री।
क्यों खेलन को आयी होली, कैसे घर मैं जाऊँ सखी री।
अब तो श्याम चरण बस जाऊँ, दीखे न कोई ठांव सखी री।
**होली की हार्दिक शुभकामनाएं**
...कैलाश शर्मा