स्थित आत्म-रूप अद्वैत में मुझको, लोक और
मुमुक्ष कहाँ है?
कौन है योगी व ज्ञानवान कौन है, कहाँ बंध
व मुक्त कहाँ है? (२०.६)
For me, who is established in his
non-dual Self,
there is no world or search for
liberation, no yogi
or seer and no bondage or liberation. (20.6)
अद्वैत आत्म-रूप में स्थित मुझको, सृष्टि
और संहार कहाँ है?
कौन साध्य है या है साधन, कहाँ है साधक या
सृष्टि कहाँ है? (२०.७)
For me, who is established in his
non-dual
existence, there is no creation or
annihilation,
no goal or means and no seeker or
achievement. (20.7)
निर्मल-रूप सर्वदा मुझको, कौन है ज्ञाता
या साक्ष्य कहाँ है?
क्या है स्वल्प व पूर्ण कहाँ है, क्या है
ज्ञेय व ज्ञान कहाँ है? (२०.८)
There is no knower or evidence, neither
less nor
complete and no knowable or knowledge to
me,
who is always pure Self. (20.8)
क्रिया-रहित सर्वदा मुझको, क्या विक्षेप,
एकाग्रता कहाँ है?
क्या है मूढ़ता या विवेक भी, उसको हर्ष,
विषाद कहाँ है? (२०.९)
For me, who is free from all actions,
there is no
distraction or concentration of mind,
there is
no stupidity or discretion and no
happiness or
sorrow. (20.9)
निर्मल-रूप सर्वदा मुझको, क्या सुख है या
दुःख क्या होता?
अर्थ नहीं संसार का उसको, परमारथ भी उसको
क्या होता? (२०.१०)
There is no happiness or sorrow and no
meaning
of this or the other world for me, who
is always
established in his spotless Self. (20.10)
...क्रमशः
वाह अदभुद।
ReplyDeleteअद्वैत का अनोखा संसार..
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