राजा जनक कहते हैं :
King Janak says :
निष्कलंक स्व-रूप में मेरे, कब पञ्चभूत,
यह देह कहाँ है?
कहाँ है मन, इन्द्रियां कहाँ हैं, शून्य
कहाँ, नैराश्य कहाँ है? (२०.१)
King Janak says that in my unblemished
Self
there are no five elements, no body, no
faculties,
no sense organs, no emptiness or
despair. (20.1)
सर्व द्वंद्व से रहित सदा मैं, आत्म-ज्ञान
या शास्त्र कहाँ है?
विषय रहित इस मन के अंदर, कहाँ तृप्ति व
घ्रणा कहाँ है? (२०.२)
For me, who is free from all dualism,
there is no
self-knowledge, no scriptures, no desire
in mind
and
no satisfaction or hatred. (20.2)
विद्या और अविद्या क्या है, क्या है अहम्,
बाह्य में क्या है?
मोक्ष है क्या या क्या है बंधन, या स्वरुप
का लक्षण क्या है? (२०.३)
There is no knowledge or ignorance, no
feeling
of ’I’ or what is there in the external
world.
There is no liberation or bondage and no
symptoms of self-nature. (20.3)
निराकार, निर्विशेष आत्म को, कब
प्रारब्धवस कर्म कहाँ है?
क्या उसको जीवन मुक्ति है, विदेह मुक्ति
का अर्थ कहाँ है? (२०.४)
For him, who is without shape and
individual
characteristics, there is no action to
be done as
per destiny, there is no liberation from
life or
bodiless state. (20.4)
स्वभाव रहित सर्वदा मुझमें, क्या है
भोक्ता व कर्ता क्या है?
कौन है निष्क्रिय, कौन स्फुरण, अप्रत्यक्ष
या प्रत्यक्ष क्या है? (२०.५)
For me, who is devoid of individual
characteristics,
there is no doer or reaper of acts, no
inaction or
action and no direct or indirect
consequences of
action. (20.5)
...क्रमशः
...© कैलाश शर्मा
लाजवाब।
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह ! अनिवर्चनीय..
ReplyDeleteवाह पावन सुंदर व्याख्या ।
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