Tuesday, 22 January 2019

अष्टावक्र गीता - भावपद्यानुवाद (तिरेपनवीं कड़ी)


                                     अठारहवाँ अध्याय (१८.७१-१८.७५)                                                                                                       (With English connotation)
शुद्ध स्फुरण रूप है जिसका, दृश्यमान अस्तित्व न रखता|      
कहाँ शान्ति व विधि है उसको, कहाँ त्याग, वैराग्य है रहता? (१८.७१)

What is peace, rules, renunciation and asceticism to
the wise man who is pure energy and visible world
has no existence for him. (18.71)

अनंत रूप से स्वयं प्रकाशित, जग अस्तित्व प्रथक न रहता|   
उसको कहाँ मोक्ष, बंधन है, मन में हर्ष, विषाद न रहता|| (१८.७२)

For him who shines with the radiance of his own
infinity, the world has no separate existence.
Therefore, he is free from liberation, bondage,
pleasure or pain. (18.72)

बुद्धिपर्यंत अस्तित्व है जग का, माया मात्र सदा यह रहता|
ममता अहम् कामना तज कर, ज्ञानी सदा है सुख से रहता|| (१८.७३)

The world is reigned by illusion only until one
realises Self. But the enlightened man remains
happily for ever by renouncing attachment, ego
and desires. (18.73)

संताप रहित अविनाशी आत्मा, जो ज्ञानी यह रूप जानता|
विद्या, विश्व, देह न ज्ञानी को, अहं भाव वह नहीं जानता|| (१८.७४)

For the seer who knows that the Self is beyond pain
and imperishable, there is no existence of  knowledge,
world, body or the sense of ego. (18.74)

चित्त निरोध आदि कर्मों का, यदि त्याग कभी मूढ़ जन करता|
प्रवृत मनोरथ में वह हो कर, प्रतिपल उनका प्रलाप है करता|| (१८.७५)

Even if the ignorant person renounces the acts like
the elimination of thought, he, indulging in mind
racing, chatters about it. (18.75)

                                                       ...क्रमशः

....© कैलाश शर्मा

5 comments:

  1. अविनाशी आत्मा को जाने बिना चित्त निरोध कहाँ सम्भव है..सुंदर बोध देती पंक्तियाँ..

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  2. ब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को राष्ट्रीय बालिका दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं|


    ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 24/01/2019 की बुलेटिन, " 24 जनवरी 2019 - राष्ट्रीय बालिका दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. आध्यात्म का गहरा बोध देती अभिव्यक्ति ।
    सादर।

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