अठारहवाँ अध्याय (१८.७१-१८.७५) (With English connotation)
शुद्ध स्फुरण रूप है जिसका, दृश्यमान अस्तित्व
न रखता|
कहाँ शान्ति व विधि है उसको, कहाँ त्याग, वैराग्य
है रहता? (१८.७१)
What is peace, rules, renunciation and asceticism to
the wise man who
is pure energy and visible world
has no existence
for him. (18.71)
अनंत रूप से स्वयं प्रकाशित, जग अस्तित्व
प्रथक न रहता|
उसको कहाँ मोक्ष, बंधन है, मन में हर्ष, विषाद
न रहता|| (१८.७२)
For him who shines with the radiance of
his own
infinity, the world has no separate
existence.
Therefore, he is free from liberation,
bondage,
pleasure or pain. (18.72)
बुद्धिपर्यंत अस्तित्व है जग का, माया मात्र
सदा यह रहता|
ममता अहम् कामना तज कर, ज्ञानी सदा है सुख
से रहता|| (१८.७३)
The world is reigned by illusion only
until one
realises Self. But the enlightened man
remains
happily for ever by renouncing
attachment, ego
and desires. (18.73)
संताप रहित अविनाशी आत्मा, जो ज्ञानी यह
रूप जानता|
विद्या, विश्व, देह न ज्ञानी को, अहं भाव
वह नहीं जानता|| (१८.७४)
For the seer who knows that the Self is
beyond pain
and imperishable, there is no existence
of knowledge,
world, body or the sense of ego. (18.74)
चित्त निरोध आदि कर्मों का, यदि त्याग कभी
मूढ़ जन करता|
प्रवृत मनोरथ में वह हो कर, प्रतिपल उनका
प्रलाप है करता|| (१८.७५)
Even if the ignorant person renounces
the acts like
the elimination of thought, he,
indulging in mind
racing, chatters about it. (18.75)
...क्रमशः
वाह बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteअविनाशी आत्मा को जाने बिना चित्त निरोध कहाँ सम्भव है..सुंदर बोध देती पंक्तियाँ..
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को राष्ट्रीय बालिका दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 24/01/2019 की बुलेटिन, " 24 जनवरी 2019 - राष्ट्रीय बालिका दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आभार..
Deleteआध्यात्म का गहरा बोध देती अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteसादर।