Friday, 30 March 2018

अष्टावक्र गीता - भावपद्यानुवाद (सेंतालीसवीं कड़ी)

                                     अठारहवाँ अध्याय (१८.४१-१८.४५)                                                                                        (With English connotation)

जो निरोध हठ कर के करता, उसका मन निरुद्ध कब होता|
रम्य आत्मा में ज्ञानी का, संयमित चित्त स्वभाव से होता|| (१८.४१)



How can the ignorant one abandon the thought,
when he is running after it. But it comes naturally
to the wise man, who remains established in his Self. (18.41) 

कोई पदार्थ की सत्ता माने, कोई उस पर विश्वास न करता|
ज्ञानी है मुक्त सदा दोनों से, आत्मानंद में मग्न है रहता|| (१८.४२)

Some believes that something exists and some
believes to the contrary. The wise man is liberated
from both the thoughts and, therefore, remains
happy in his inner Self. (18.42)

अपनी अद्वैत शुद्ध आत्मा का, केवल मन में भाव है रखते|
आत्मा से अनभिज्ञ मूढ़ जन, शांति-रहित जीवन में रहते|| (१८.४३)

The man of lesser intelligence thinks about the
pure non-duality of himself, but being ignorant
of the same due to his delusion, he remains
unfulfilled in his life. (18.43)
              
आत्मा से परिचय न जिसका, बिन आलम्ब न बुद्धि रहती|
मुक्त पुरुष की बुद्धि लेकिन, निष्काम निराश्रय ही है रहती|| (१८.४४)

The one who is not aware of his self does not find
a resting place within, but the one, who is liberated,
is free from desires and, therefore, needs no
resting place. (18.44)

विषय रूप व्याघ्र आतंकित, मूढ़ स्व-रक्षा प्रयास है करता|
एकाग्र निरोध सिद्धि करने को, चित्त गुफा प्रवेश है करता|| (१८.४५)

Being afraid of the tigers of the senses, the
ignorant takes refuge in the cave of his mind
in search of cessation of thought and
one-pointedness. (18.45)


                                             ...क्रमशः


....© कैलाश शर्मा

7 comments:

  1. बहुत सुंदर व्याख्या ...

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  2. अपनी अद्वैत शुद्ध आत्मा का, केवल मन में भाव है रखते|
    आत्मा से अनभिज्ञ मूढ़ जन, शांति-रहित जीवन में रहते||

    सही कहा है, स्वयं के भीतर जिसने आत्मबोध को नहीं पाया उनके लिए संसार दुरूह है

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  3. विषय रूप व्याघ्र आतंकित, मूढ़ स्व-रक्षा प्रयास है करता|
    एकाग्र निरोध सिद्धि करने को, चित्त गुफा प्रवेश है करता||
    बहुत ही सुन्दर !!

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