अभ्यास कर्म से है अज्ञानी, कभी मुक्ति को प्राप्त न होता|
ज्ञानी कर्म रहित हो कर भी, ज्ञान मात्र से मुक्त है होता|| (१८.३६)
The stupid person does not attain liberation
by regular practice, while the wise man even
without doing anything achieves liberation,
merely by understanding. (18.36)
परम ब्रह्म रूप चाहता होना, अज्ञानी को ब्रह्म न मिलता|
ज्ञानी पुरुष न इच्छा करके भी, ब्रह्म बोध रूप में रहता|| (१८.३७)
The ignorant wants to become Supreme God,
but he never attains the same, whereas the
wise person remains established in the status
of Supreme God, even without desiring the same. (18.37)
ग्रसित निराधार आग्रह से, जग का पोषण अज्ञानी करता|
सब अनर्थ का मूल ये जग है, ज्ञानी उसको नष्ट है करता|| (१८.३८)
Being involved in baseless desires, the ignorant
nourishes the samsara, whereas the wise man
knowing that this samsara (world) is the root
of all sufferings, destroys it. (18.38)
ग्रस्त शान्ति पाने की इच्छा से, प्राप्त शान्ति न मूढ़ है करता|
आत्मतत्व का निश्चय कर के, ज्ञानी है सदा शांत चित रहता|| (१८.३९)
The stupid person does not attain peace, because
he desires it. However, the wise man, concentrating
on the inner truth, always remains at peace. (18.39)
उसको दर्शन कहाँ आत्म का, केवल दृश्य वस्तु सच माने|
दृश्य पदार्थ है नहीं देखता, ज्ञानी अविनाशी स्वरुप है जाने|| (१८.४०)
The one who believes only on what he sees from
his eyes can never see the Self. The wise person
does not see any visible thing, but sees his infinite
Self. (18.40)
...क्रमशः
....© कैलाश शर्मा
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बधाई
ReplyDeleteनिराधार आग्रह ही मन को जगत से बांधे रखता है, सत्य का बोध होने पर सभी आग्रह छुट जाते हैं.
ReplyDeleteग्रसित निराधार आग्रह से, जग का पोषण अज्ञानी करता|
ReplyDeleteसब अनर्थ का मूल ये जग है, ज्ञानी उसको नष्ट है करता||
बहुत सुन्दर और सरल शब्दों में आपने ज्ञानी को परिभाषित कर दिया !! बढ़िया श्रंखला है ये आपकी आदरणीय शर्मा जी
सुन्दर।
ReplyDelete