न ध्यान विरत, न कर्म चेष्टा, जीवन्मुक्त है
चित्त न धरता|
निमित्तशून्य, ध्यान विरत है, लेकिन है स्व-कर्म
भी करता|| (१८.३१)
The liberated man
does not make effort to
meditate or act,
but still meditates and acts
without any
object. (18.31)
पूर्णतत्व का वर्णन सुनकर, मोह आचरण मूढ़ है
करता|
कभी कभी ज्ञानी जन कोई, है व्यवहार मूढ़वत करता|| (१८.३२)
An ignorant man is
wonderstruck listening to
the real truth,
but even the wise man is
humbled by it and
behaves like a fool. (18.32)
एकाग्रता, निरोध चित्त का, सतत प्रयास मूढ़ है
करता|
धीर सुषुप्तावस्था में भी, स्व-स्थित कुछ कृत्य न
करता|| (१८.३३)
The
ignorant man makes continuous efforts
for
single-pointedness and stopping the
thoughts,
but the wise man does not act
at
all, remaining established in himself like
the
one asleep. (18.33)
अनुष्ठान या मन निरोध से, मूढ़ शांति प्राप्त न
करता|
तत्व बोध मात्र से ज्ञानी, परम शांति को प्राप्त
है करता|| (१८.३४)
The stupid person
does not attain the feeling
of abandonment,
whether he acts or abandons
actions, whereas
the wise man attains peace
within, simply by knowing the truth. (18.34)
कर्म परायण जन हैं जग में, अनभिज्ञ आत्म स्वरूप
से रहते|
शुद्ध, बुद्ध, प्रिय, पूर्ण, निरामय आत्मा का है
बोध न रखते|| (१८.३५)
The people who
always remain engaged in
practice to know
themselves, are ignorant of
themselves, which
is pure awareness, clear,
complete and
faultless. (18.35)
...क्रमशः
....© कैलाश शर्मा
कर्म परायण जन हैं जग में, अनभिज्ञ आत्म स्वरूप से रहते|
ReplyDeleteशुद्ध, बुद्ध, प्रिय, पूर्ण, निरामय आत्मा का है बोध न रखते||
बहुत सरल और सुंदर व्याख्या !! आखिरी में जो पंक्तियाँ लिखी हैं , अप्रतिम हैं , सटीक हैं !!
जग में मनुष्य तत्व बोध को नहीं जानता उसे सब कुछ अपना और स्वार्थ ही लगता है परन्तु तब तत्व का बोध हो जाता है तो वह सांसारिक जीवन से ऊपर उठकर लोक में रहते हुए परलोक का आनंद लेने लगता है।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/11/43.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसत्य वचन ,आत्मा का सच्चा बोध होने के बाद ही जीवन के सही मायने ज्ञात होते है ,वरना मनुष्य जीवन के उतार-चढ़ाव में उलझा ही रहता है
ReplyDeleteबहुत लाजवाब....
ReplyDeleteनमन आपकी लेखनी को....बहुत बहुत नमन आपको..
वाह
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