Friday 26 February 2016

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (सत्ताईसवीं कड़ी)

                  तेरहवां अध्याय (१३.५-१३.७)                                                                                     (with English connotation)
विश्राम, गति, शयन और कर्मों में, मेरा हानि लाभ न होता|
लौकिक व्यवहार में दंभ रहित मैं, आत्मानंद में स्थिर होता||(१३.५)

I incur no loss or profit while resting, moving,
sleeping or working. Performing my worldly duties
without any ego, I exist in my Self pleasantly.(13.5)

हानि नहीं मेरी कुछ भी सोने से, कार्य सिद्धि से लाभ न होता|
हर्ष विषाद का त्याग मैं कर के, स्थिर सब स्थितियों में होता||(१३.६)

I do not suffer any loss by sleeping and do not get any benefit by performing activities. By renouncing happiness and sorrow, I remain constant in all situations.(13.6)

है अनित्य सुख दुःख जीवन में, आना जाना है क्रम से रहता|
शुभ व अशुभ का चिंतन तज कर, खुश मैं हर स्थित में रहता||(१३.७)

Knowing that pleasure and pain are temporary and
come and go repeatedly. By renouncing the
thought of auspicious and inauspicious, I exist
pleasantly in all situations.(13.7)


                   **तेरहवां अध्याय समाप्त** 
                                                      ...क्रमशः
....©कैलाश शर्मा   

13 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-02-2016) को "नमस्कार का चमत्कार" (चर्चा अंक-2265) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. अति सुन्दर अनुवाद। इस खूबसूरत कार्य के लिये बधाई एवं धन्यवाद।

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  3. अति सुन्दर अनुवाद। इस खूबसूरत कार्य के लिये बधाई एवं धन्यवाद।

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " परमार्थ से बड़ा सुख नहीं - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. बहुत खूबसूरत अनुवाद

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  6. है अनित्य सुख दुःख जीवन में, आना जाना है क्रम से रहता|
    शुभ व अशुभ का चिंतन तज कर, खुश मैं हर स्थित में रहता|

    यही समता भाव तो साधक का लक्ष्य है

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  7. है अनित्य सुख दुःख जीवन में, आना जाना है क्रम से रहता|
    शुभ व अशुभ का चिंतन तज कर, खुश मैं हर स्थित में रहता||
    सुन्दर भावों में रचे बसे शब्द आदरणीय शर्मा जी ! सुन्दर प्रस्तुति

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  8. अति उत्तम प्रस्तुति। धन्यवाद कैलाशजी।

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