दशम अध्याय (१०.१-१०.४)
(with English connotation)
(with English connotation)
अष्टावक्र कहते हैं :
Ashtavakra says :
धन और काम अनर्थ के हेतु, त्याग करो तुम शत्रु
समझ के|
तुम सब से विरक्त हो जाओ, इन दोनों का त्याग है
करके||(१०.१)
Give up desires and wealth, which are your enemies.
Abandoning these two, be indifferent to
everything. (10.1)
स्त्री, पुत्र, मित्र, धन दौलत, इनको क्षणिक
स्वप्नवत मानो|
कुछ दिन का ही साथ है इनका, तुम केवल ये माया
जानो||(१०.२)
Look at wife, son, friends and properties as
momentary dream. As these are only for a
short time with you, treat them as Maya. (10.2)
जिस जिस में आसक्ति मन की, कारण वह संसार का
होता|
वैराग्य गहन का आश्रय लेकर, इच्छा रहित सुखी है
होता||(१०.३)
Wherever is your attachment, that is world. By
following this complete non-attachment, you
will be free from desires and will attain happiness. (10.3)
तृष्णा केवल बंध आत्म का, उसका नाश मोक्ष है
होता|
हो करके आसक्तिरहित ही, चिर आनंद प्राप्त
है होता||(१०.४)
Desires are the bondage of Self. Moksha is
nothing but liberation from desires.
Non-attachment only may lead to permanent
bliss. (10.4)
....क्रमशः
....©कैलाश शर्मा
वाह सर बहुत ही बढ़िया ज्ञान वर्धक पंक्तियाँ है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार!
बेहतरीन अनुवाद।अति सुन्दर।
ReplyDeleteवाह अदभुत !
ReplyDeletebadhiya, gyaavardhak!
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.12.2015) को " लक्ष्य ही जीवन का प्राण है" (चर्चा -2187) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, सादर धन्यबाद।
ReplyDeleteआभार...
DeleteSarahneey prastuti
ReplyDeletesadar
Bahut sunder ,sir
ReplyDeleteBahut sunder ,sir
ReplyDeleteउत्तम और सराहनीय रचनाधर्मिता.....
ReplyDeleteतृष्णा केवल बंध आत्म का, उसका नाश मोक्ष है होता|
ReplyDeleteहो करके आसक्तिरहित ही, चिर आनंद प्राप्त है होता
सत्य वचन..बोध दिलाती पंक्तियाँ !
सुन्दर व सार्थक रचना ..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
जिस जिस में आसक्ति मन की, कारण वह संसार का होता|
ReplyDeleteवैराग्य गहन का आश्रय लेकर, इच्छा रहित सुखी है होता
जीवन के इस मार्ग में इस तरह की जो पंक्तियाँ मिलती हैं वो भले ज्यादा परिवर्तन न ला सकें किन्तु मन को उद्धेलित होने से जरूर रोकती हैं !! बहुत सुन्दर और सार्थक पंक्तियाँ आदरणीय शर्मा जी
बहुत सुंदर और सार्थक
ReplyDeletesaral anuvaad ..
ReplyDeleteमाया जाल में खो कर इन्सान फंसता चला जाता है । मोक्ष के लिए इन सब का त्याग जरुरी है । गीता अपने आप में अदभुद है। आपकी ब्लॉग ने सार्थक कर दिया । बहुत सुंदर ।
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