Thursday, 24 July 2014

दोहे

मन चाहा कब होत है, काहे होत उदास,
उस पर सब कुछ छोड़ दे, पूरी होगी आस.
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मन की मन ने जब करी, पछतावे हर बार,
करता सोच विचार के, उसका है संसार.
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चलते चलते थक गया, अब तो ले विश्राम,
माया ममता छोड़ कर, ले ले हरि का नाम.
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किसका ढूंढे आसरा, किस पर कर विश्वास,
सब मतलब के साथ हैं, उस पर रख विश्वास.
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क्या कुछ लाया साथ में, क्या कुछ लेकर जाय, 
लेखा जोखा कर्म का, साथ तेरे रह जाय.
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जीवन में कीया नहीं, कभी न कोई काम,
कैसे समझेंगे भला, महनत का क्या दाम.
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मन चंचल है पवन सम, जित चाहे उड़ जाय,
संयम की रस्सी बने, तब यह बस में आय.
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धन से कब है मन भरा, कितना भी आ जाय,
जब आवे संतोष धन, सब धन है मिल जाय.
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अपने दुख से सब दुखी, दूजों का दुख देख,
अपना दुख कुछ भी नहीं, उनके दुख को देख.
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...कैलाश शर्मा   

Friday, 4 July 2014

खोल दो सभी खिड़कियाँ

मत खींचो लक़ीरें 
अपने चारों ओर
निकलो बाहर 
अपने बनाये घेरे से.

खोल दो सभी खिड़कियाँ 
अपने अंतस की,
आने दो ताज़ा हवा 
समग्र विचारों की,
अन्यथा सीमित सोच से
रह जाओगे घुट कर 
अपने बनाये घेरे में 
ऊँची दीवारों के बीच.

...कैलाश शर्मा