हर आती सांस
देती एक ऊर्जा व शांति
तन और मन को,
जब निकलती है सांस
दे जाती मुस्कान अधरों को.
हर श्वास का आना जाना ही
है एक सम्पूर्ण शाश्वत पल,
जियो इस पल को
विस्मृत कर भूत व भविष्य.
....कैलाश शर्मा
देती एक ऊर्जा व शांति
तन और मन को,
जब निकलती है सांस
दे जाती मुस्कान अधरों को.
हर श्वास का आना जाना ही
है एक सम्पूर्ण शाश्वत पल,
जियो इस पल को
विस्मृत कर भूत व भविष्य.
....कैलाश शर्मा
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (04.04.2014) को "मिथकों में प्रकृति और पृथ्वी" (चर्चा अंक-1572)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत बात
ReplyDeleteपर ये साँस भी कहाँ
रह पाती है कभी याद :)
वाह ! बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्दों का चयन और संयोजन कर एक बेहतरीन सन्देश परक प्रस्तुति
ReplyDeleteजो मार्गदर्शन करा रही है, जोश-जज़्बा जगा रही है और ज़िन्दगी को सार्थकता प्रदान करने को कह रही है।
बहुत खूब
एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''भूल कर भी, अब तुम यकीं, नहीं करना''
हर श्वास का आना जाना ही
ReplyDeleteहै एक सम्पूर्ण शाश्वत पल bahut khub.
सही है। ऐसा ही है कुछ अध्यात्म में सोचना।
ReplyDeleteयही है शाश्वत सत्य, वर्तमान ही शाश्वत रहता है .. बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteठीक ही तो है -जिस पर हमारा वश है, उस वर्तमान को ठीक से जी लें तो भविष्य अपनी चिंता ख़ुद कर लेगा .
ReplyDeleteबिलकुल सही बात भाई
ReplyDeleteशुभप्रभात
बहुत सुंदर एवं शाश्वत.
ReplyDeleteनई पोस्ट : मिथकों में प्रकृति और पृथ्वी
सुन्दर और अर्थपूर्ण...यही शाश्वत सत्य है...एक साँस आए, एक साँस जाए...यही जीवन कहलाए..
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं शाश्वत.भाव किए अर्थपूर्ण..
ReplyDeletesir aapke lie koi shbd hi nahi hain.....:-)
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