Saturday, 14 November 2015

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (सत्रहवीं कड़ी)

                                       अष्टम अध्याय (८.१-८.४)
                                            (with English connotation)
अष्टावक्र कहते हैं :
Ashtavakra says :

जब मन कुछ इच्छा करता है, त्याग, ग्रहण, शोक करता है|
कभी प्रसन्न या क्रोधित है होता, तब वह बंधन में रहता है||(८.१)

There is bondage when the mind desires some
thing, rejects something, receives something,
grieves about something, rejoices at something
or is displeased at something.(8.1)

कोई इच्छा न जागे मन में, शोक, त्याग, ग्रहण न करता|
न प्रसन्न, न क्रोध ही जगता, तब वह बंधन मुक्त है रहता||(८.२)

When mind does not desire anything, does not
grieve about anything, neither accepts nor
discards anything, neither happiness nor anger
arises in him, then he is free from bondage.(8.2)

आसक्त दृष्टिमान वस्तु में रहता, तब मन बंधन में होता है|
आसक्तिहीन हो जाता जब मन, मुक्त है बंधन से होता है||(८.३)

The mind is in bondage when it is attached to
any visible thing. When the mind is not attached
to anything, it becomes free from bondage.(8.3)

जब तक ‘मैं’ है तब तक बंधन, ‘मैं’ से मुक्ति मोक्ष है मानो|
ग्रहण करो या न कुछ त्यागो, ज्ञान है जब इसको तुम जानो||(८.४)

The freedom from Í’ and ‘me’ is liberation and
the existence of Í’and ‘me’ is bondage. Considering
this, you need not hold or sacrifice anything.(8.4)

                        अष्टम अध्याय समाप्त  

                                                       ....क्रमशः

....©कैलाश शर्मा 

16 comments:

  1. मन की स्थितियों की सुन्दर विवेचना । सुन्दर प्रयास , सफल - प्रयास , प्रणम्य - प्रस्तुति ।
    शुभ - अवसर पर सुस्वादु - पकवान , परोसना कोई आपसे सीखे ।

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  2. यदि 'मैं' ही नहीं रहेगा तो मुक्ति/मोक्ष पाने वाला कौन है ?
    अष्टावक्र गीता प्रमाण नहीं है।श्री मद्भग्वद्गीता ही प्रमाण है !
    जय श्री कृष्ण !!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-11-2015) को "बच्चे सभ्यता के शिक्षक होते हैं" (चर्चा अंक-2161)    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    बालदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  4. बेहद अध्‍यात्मिक पोस्‍ट की प्रस्‍तुति।

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  5. लाजवाब अनुवाद।

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  6. लाजवाब अनुवाद।

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  7. सुन्दर अनुवाद

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  8. उत्कृष्ट श्रृंखला के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  9. उत्कृष्ट श्रृंखला के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  10. जब तक ‘मैं’ है तब तक बंधन, ‘मैं’ से मुक्ति मोक्ष है मानो|
    ग्रहण करो या न कुछ त्यागो, ज्ञान है जब इसको तुम जानो
    बहुत ही सार्थक और ज्ञानप्रद !

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  11. बहुत ही ज्ञानवर्धक और सार्थक ।

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  12. This comment has been removed by the author.

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  13. सुंदर, सार्थक, ज्ञानवर्धक

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