मोह लोभ से मुक्त है, जब अंतर्मन होय।
ईश भक्ति के नीर से, पूरित घट तब होय।।(१)
अपने कर्म न देखते, देत नियति को दोष।
कालिख छू कालिख लगे, कालिख का क्या दोष।।(२)
कालिख छू कालिख लगे, कालिख का क्या दोष।।(२)
जन्म न दुख न मृत्यु सुख, केवल मन की सोच।
जीवन का यह चक्र है, आगे बढ़ मत सोच।।(३)
जीवन का यह चक्र है, आगे बढ़ मत सोच।।(३)
मन की बात न मन सुने, मन ही है पछताय।
मन से मन की जीत है, मन ही देय हराय।।(४)
मन से मन की जीत है, मन ही देय हराय।।(४)
तेरा मेरा करन में, जीवन दिया बिताय।
अंत समय जब आत है, सब पीछे रह जाय।।(५)
अपने दुख से सब दुखी, दूजों का दुख देख।
अपना दुख कुछ भी नहीं, उनके दुख को देख।।(६)
अपना दुख कुछ भी नहीं, उनके दुख को देख।।(६)
चलते कब हैं साथ में, दिन होते उड़ जाय।
सपने सच होते कहाँ, व्यर्थ हमें भरमाय।।(7)
सपने सच होते कहाँ, व्यर्थ हमें भरमाय।।(7)
...कैलाश शर्मा
बहुत सुंदर दोहे !
ReplyDeleteअपने कर्म न देखते, देत नियति को दोष।
ReplyDeleteकालिख छू कालिख लगे, कालिख का क्या दोष..
सच को बाखूबी कह दिया आपने ... अपने आप को कोई नहीं देखता बस शिकायत करते हैं ...
सभी दोहे बहुत सार्थक ...
दोहे में ही कह - दिए कितनी सुन्दर - बात ।
ReplyDeleteरात अमावस चली गई आया नवल प्रभात ॥
बहुत खूब...आभार
Deleteजिंदगी की सच्चाई से जुड़े खूबसूरत दोहे।बहुत खूब शर्मा जी।
ReplyDeleteसुंदर, सार्थक दोहे
ReplyDeleteबहुत सुंदर.. गागर में सागर...
ReplyDeleteKhoobsoorat :)
ReplyDeleteइस ज़माने में ऐसे दोहे बड़े दुर्लभ हैं। बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteवाह भाई जी बहुत सुंदर और प्रभावी दोहे
ReplyDeleteसादर
मन की बात न मन सुने, मन ही है पछताय।
ReplyDeleteमन से मन की जीत है, मन ही देय हराय।।
तेरा मेरा करन में, जीवन दिया बिताय।
अंत समय जब आत है, सब पीछे रह जाय।।
सुन्दर और सार्थक दोहे आदरणीय शर्मा जी ! दोहे अंतर्मन में झाँकने के साथ साथ प्रेरणा भी देते हैं !
अति सुंंदर, रम्य दोहे
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