मनवा न लागत है तुम
बिन.
जब से श्याम गए हो
ब्रज से, तड़पत है हिय निस दिन.
सूना लागत बंसीवट का
तट, न लागत मन तुम बिन.
पीत कपोल भये हैं
कारे, अश्रु बहें नयनन से निस दिन.
अटके प्रान गले में
अब तक, आस दरस की निस दिन.
वृंदा सूख गयी है वन
में, यमुना तट उदास है तुम बिन.
आ जाओ अब तो तुम
कान्हा, प्यासा मन है तुम बिन.
...कैलाश शर्मा
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत हि सुंदर रचना सर धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeletebahut sundar v sarthak rachna
ReplyDeletehe krishn ke govind , he goapal !
ReplyDeleteaur ye pyaasa man har bhakt ka hia kailaash ji !
विरहाकुल ह्रदय की करण पुकार कहती मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteबहुत खूब :)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ......गाने का मन है ...समय मिलते ही रिकार्ड करूंगी
ReplyDeleteवाह आज तो सूर दास के पदों की याद करा दी आपने ... बहुत ही लाजवाब ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आध्यात्मिक शब्द ! जय माता दी
ReplyDeleteवाह गज़ब प्रस्तुति है
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रभु चिंतन ..
ReplyDeleteदशहरा की हार्दिक शुभकामनाऐं।
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण !
दशहरा की हार्दिक शुभकामनाये !
Home Shifting Service in India | Packers and Movers for Home shifting
ReplyDelete