Thursday, 18 September 2014

मनवा न लागत है तुम बिन

मनवा न लागत है तुम बिन.
जब से श्याम गए हो ब्रज से, तड़पत है हिय निस दिन. 
सूना लागत बंसीवट का तट, न लागत मन तुम बिन.  
पीत कपोल भये हैं कारे, अश्रु बहें नयनन से निस दिन.   
अटके प्रान गले में अब तक, आस दरस की निस दिन.      
वृंदा सूख गयी है वन में, यमुना तट उदास है तुम बिन.      
आ जाओ अब तो तुम कान्हा, प्यासा मन है तुम बिन.

...कैलाश शर्मा 

15 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर

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  2. he krishn ke govind , he goapal !
    aur ye pyaasa man har bhakt ka hia kailaash ji !

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  3. विरहाकुल ह्रदय की करण पुकार कहती मर्मस्पर्शी रचना !

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  4. बहुत ही सुन्दर ......गाने का मन है ...समय मिलते ही रिकार्ड करूंगी

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  5. वाह आज तो सूर दास के पदों की याद करा दी आपने ... बहुत ही लाजवाब ...

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  6. बहुत सुन्दर आध्यात्मिक शब्द ! जय माता दी

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  7. वाह गज़ब प्रस्तुति है

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  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

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  9. बहुत सुंदर प्रभु चिंतन ..
    दशहरा की हार्दिक शुभकामनाऐं।

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  10. सुन्दर भावपूर्ण !
    दशहरा की हार्दिक शुभकामनाये !

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