मनवा न लागत है तुम
बिन.
जब से श्याम गए हो
ब्रज से, तड़पत है हिय निस दिन.
सूना लागत बंसीवट का
तट, न लागत मन तुम बिन.
पीत कपोल भये हैं
कारे, अश्रु बहें नयनन से निस दिन.
अटके प्रान गले में
अब तक, आस दरस की निस दिन.
वृंदा सूख गयी है वन
में, यमुना तट उदास है तुम बिन.
आ जाओ अब तो तुम
कान्हा, प्यासा मन है तुम बिन.
...कैलाश शर्मा