Monday, 1 July 2019

अष्टावक्र गीता - भावपद्यानुवाद (तिरेसठवीं कड़ी)

                                     बीसवाँ अध्याय (२०.११-२०.१४)                                                                                                       (With English connotation)

निर्मल-रूप सर्वदा मुझको, कहाँ है माया, संसार कहाँ है?
कहाँ प्रीती व कहाँ विरति है, कहाँ जीव व ब्रह्म कहाँ है? (२०.११)

For pure and stainless my Self, there is no illusion,
no world, no attachment or detachment and no
living being or God. (20.11)

अचल, विभाग-रहित सर्वदा, मैं स्व-रूप में स्थित रहता?
कहाँ प्रवृत्ति या निर्वृत्ति है, कहाँ मुक्ति या बंधन रहता? (२०.१२)

Immoveable, indivisible and established in
my Self, there is no inclination or renunciation
and no liberation or bondage. (10.12)

उपाधि रहित कल्याण रूप को, शास्त्र और उपदेश कहाँ है?
क्या है योग्य प्राप्त करने के, कौन शिष्य या गुरु कहाँ है? (२०.१३)

For the blissful and without distinction my Self,
there is no sermon or scripture, no disciple or
teacher and no goal to be achieved. (20.13)

क्या अस्तित्व, शून्य क्या होता, क्या अद्वैत, द्वैत, है होता?
इससे अधिक कहा क्या जाए, मुझमें कुछ भी भाव न होता? (२०.१४)

There is no existence or non-existence and no
duality or non-duality. What more remains to be
explained? No feeling arises now out of me. (20.14)

**इति श्री अष्टावक्र गीता - भावपद्यानुवाद**

...© कैलाश शर्मा