स्वप्न कहाँ न नींद है मुझको, तुरीय
अवस्था, जागरण कहाँ है?
अपनी महिमा में स्थित मुझको, स्थित भय या
अभय कहाँ है? (१९.५)
There is no dreaming or sleeping, no
waking or the
fourth stage beyond it and no fear or absence of it
for me, who is established in the grace
of Self. (19.5)
अपनी महिमा में स्थित मुझको, कहाँ दूर या
पास कहाँ है?
क्या है आतंरिक या है बाह्य, स्थूल कहाँ व
सूक्ष्म कहाँ है? (१९.६)
There is nothing far or near, nothing
within or
without and nothing substantial or
subtle for me,
who is established in Self. (19.6)
अपनी महिमा में स्थित मुझको, कहाँ है
जीवन, मृत्यु कहाँ है?
न पारलौकिक या लौकिक है, कहाँ है लय या
समाधि कहाँ है? (१९.७)
There is neither life nor death, neither
this world
nor other world and neither distraction
nor
meditation for me, who is established in
Self. (19.7)
स्व-आत्म में स्थित मुझको, अब त्रय जीवन
उद्देश्य निरर्थक|
न विज्ञान कथा से मुझे प्रयोजन, योग कथा
है पूर्ण निरर्थक|| (१९.८)
For me who is established in Self what
is the purpose
of
discussion of three goals of life, knowledge or yoga. (19.8)
...क्रमशः
...© कैलाश शर्मा