Monday, 29 April 2019

अष्टावक्र गीता - भावपद्यानुवाद (साठवीं कड़ी)

                                     उन्नीसवां अध्याय (१९.०५-१९.०८)                                                                                                       (With English connotation)
स्वप्न कहाँ न नींद है मुझको, तुरीय अवस्था, जागरण कहाँ है?
अपनी महिमा में स्थित मुझको, स्थित भय या अभय कहाँ है? (१९.५)

There is no dreaming or sleeping, no waking or the
fourth stage beyond it and no fear or absence of it
for me, who is established in the grace of Self. (19.5)

अपनी महिमा में स्थित मुझको, कहाँ दूर या पास कहाँ है?
क्या है आतंरिक या है बाह्य, स्थूल कहाँ व सूक्ष्म कहाँ है? (१९.६)

There is nothing far or near, nothing within or
without and nothing substantial or subtle for me,
who is established in Self. (19.6)

अपनी महिमा में स्थित मुझको, कहाँ है जीवन, मृत्यु कहाँ है?
न पारलौकिक या लौकिक है, कहाँ है लय या समाधि कहाँ है? (१९.७)

There is neither life nor death, neither this world
nor other world and neither distraction nor
meditation for me, who is established in Self. (19.7)

स्व-आत्म में स्थित मुझको, अब त्रय जीवन उद्देश्य निरर्थक|
न विज्ञान कथा से मुझे प्रयोजन, योग कथा है पूर्ण निरर्थक|| (१९.८)

For me who is established in Self what is the purpose
of discussion of three goals of life, knowledge or yoga. (19.8)

                                   ...क्रमशः

...© कैलाश शर्मा                    

Wednesday, 3 April 2019

अष्टावक्र गीता - भावपद्यानुवाद (उनसठवीं कड़ी)

                                     उन्नीसवां अध्याय (१९.०१-१९.०४)                                                                                                       (With English connotation)
जनक कहते हैं :
King Janak says :

गुरु से तत्व ज्ञान को सुन कर, हुई शान्ति शिष्य के मन को|
तत्व-ज्ञान की चिमटी द्वारा, है दूर किया विकल्प कंटक को|| (१९.१)

After listening to the knowledge of truth, I have
attained the peace of mind. By the tweezer of
the knowledge of truth, the thorns of endless
alternatives have been removed from my heart. (19.1)

अपनी महिमा में स्थित मुझको, धर्म कहाँ है, काम कहाँ है?
अर्थ, विवेक न स्थित मुझ में, कहाँ द्वैत, अद्वैत कहाँ है? (१९.२)

For me, who is established in the grace of Self,
there is neither righteousness nor desire, neither
 possession nor discretion, neither duality nor
even non-duality. (19.2)

भूत, भविष्य व वर्त्तमान है, न समय, देश अस्तित्व दृष्टि में|
नित्य मैं स्थित स्व-महिमा में, मुझे एक सब आत्म-दृष्टि में|| (१९.३)

There is no existence of past, present, future,
time or space for me, who is established in the
grace of Self. (19.3)

अपनी महिमा में स्थित मुझको, कहाँ आत्म, अनात्म कहाँ है?
कहाँ अशुभ या शुभ है मुझको, चिंता या चिंता-मुक्ति कहाँ है? (१९.४)

There is no Self or non-Self, no good or evil and
no worry or absence of it for me, who is established
in the grace of Self. (19.4)

                                    ...क्रमशः


...© कैलाश शर्मा