Friday, 24 March 2017

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (चालीसवीं कड़ी)

                     अठारहवाँ अध्याय (१८.०६-१८.१०)                                                                                (With English connotation)
मोह मात्र रहित होने पर, अपना स्वरुप ज्ञात है होता|
दृष्टि पटल विलीन होते ही, शोक रहित ज्ञानी है होता||(१८.६)

When one, whose vision is unclouded, becomes
free from ignorance and attachment and realises
his true nature, he lives without sorrow.(18.6)

मात्र कल्पना सर्व जगत है, मुक्त सनातन आत्म है रहता|
ज्ञानी जन है सत्य जानकर, बालक सा व्यवहार न करता||(१८.७)

Knowing that the world is mere imagination and
the soul is eternally free, the knowledgeable
person does not behave like a fool.(18.7)

आत्मा को ही ब्रह्म है जाने, भाव अभाव कल्पना माने|
निष्काम पुरुष जानकर ऐसा, कहे करे और क्या जाने||(१८.८)

Knowing himself as Brahm (Supreme) and
being and non-being only imagination, there
is nothing for a person, free from desire, to
say, do or know more.(18.8)

आत्मा का अस्तित्व सभी में, ऐसा जान जो है चुप रहता|
ऐसे ज्ञानी के अंतस में, मैं यह या मैं वह न संशय रहता||(१८.९)

The doubt that ‘I am this’ or ‘I am that’ is calmed
in the Yogi after realising that I am in everything.(18.9)

अपने स्वरुप में शांत जो ज्ञानी, न विक्षुब्ध न तन्मय रहता|
न ही ज्ञान है, न ही मूढ़ता, सुख दुःख से वह परे है रहता||(१८.१०)

For the Yogi who is established and found peace
in himself, there is neither distraction nor one-
pointedness, neither knowledge nor ignorance
and he remains beyond happiness and sorrow.(18.10)

                                                 ...क्रमशः


....© कैलाश शर्मा

15 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-03-2017) को

    "हथेली के बाहर एक दुनिया और भी है" (चर्चा अंक-2610)

    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. हर बार की तरह सुन्दर प्रस्तुति। .

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  3. सुंदर बोध देतीं पंक्तियाँ..

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  4. Hello, I’m Rebecca from NewsDog who is in charge of blogger partnership. We can provide traffic for your articles and revenue share every month. If you want to cooperate with us, please contact me: caoxue@hinterstellar.com

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  5. आत्मा का अस्तित्व सभी में, ऐसा जान जो है चुप रहता|
    ऐसे ज्ञानी के अंतस में, मैं यह या मैं वह न संशय रहता||
    बहुत सुन्दर !! हमेशा की तरह सार्थक और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति !!

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  6. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/03/12.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  7. ख़ूबसूरत वर्णन जीवन के सत्य का

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  8. जीवन सत्य को इन कड़ीयों के सहारे सब तक पहुंचाने का शुक्रिया ...

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  9. बहुत सुंदर अनुवाद ! खूबसूरत आदरणीय !

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  10. वैदिक-साहित्य का सरलीकरण करता यह प्रयास अनुकरणीय और प्रसंशनीय है।

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  11. बहुत ही सुन्दर ज्ञान वर्धक रचना...

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  12. बहुत सुन्दर रचना

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  13. बहुत सुन्दर रचना

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  14. बहुत सुन्दर रचना..... आभार
    मेरे ब्लॉग की नई रचना पर आपके विचारों का इन्तजार।

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