मोह मात्र रहित होने
पर, अपना स्वरुप ज्ञात है होता|
दृष्टि पटल विलीन
होते ही, शोक रहित ज्ञानी है होता||(१८.६)
When one, whose vision is unclouded,
becomes
free from ignorance and attachment and
realises
his true nature, he lives without
sorrow.(18.6)
मात्र कल्पना सर्व
जगत है, मुक्त सनातन आत्म है रहता|
ज्ञानी जन है सत्य
जानकर, बालक सा व्यवहार न करता||(१८.७)
Knowing that the world is mere imagination
and
the soul is eternally free, the
knowledgeable
person does not behave like a fool.(18.7)
आत्मा को ही ब्रह्म
है जाने, भाव अभाव कल्पना माने|
निष्काम पुरुष जानकर
ऐसा, कहे करे और क्या जाने||(१८.८)
Knowing himself as Brahm (Supreme) and
being and non-being only imagination, there
is nothing for a person, free from desire,
to
say, do or know more.(18.8)
आत्मा का अस्तित्व
सभी में, ऐसा जान जो है चुप रहता|
ऐसे ज्ञानी के अंतस
में, मैं यह या मैं वह न संशय रहता||(१८.९)
The doubt that ‘I am this’ or ‘I am that’ is calmed
in the Yogi after realising that I am in
everything.(18.9)
अपने स्वरुप में
शांत जो ज्ञानी, न विक्षुब्ध न तन्मय रहता|
न ही ज्ञान है, न ही
मूढ़ता, सुख दुःख से वह परे है रहता||(१८.१०)
For the Yogi who is established and found
peace
in himself, there is neither distraction
nor one-
pointedness, neither knowledge nor
ignorance
and he remains beyond happiness and
sorrow.(18.10)
....© कैलाश शर्मा