चौदहवां अध्याय (१४.१-१४.४) (with English connotation)
Knowing the God or Lord as witness, I have
राजा जनक कहते हैं :
King Janak says :
शून्य चित्त है जो स्वभाव
से, शायद ही कुछ इच्छा करता|
मुक्त पूर्व स्मृतियों
से है होता, जैसे जन हैं नींद से जगता||(१४.१)
He, who by nature is empty-minded and hardly
desires anything, becomes free from previous
memories, like a person who wakes up from sleep.(14.1)
गलित हो गयी जब
इच्छाएं, धन, मित्रों से नहीं प्रयोजन|
विज्ञान, शास्त्र और
भोगों से, रहता कब है कोई प्रयोजन||(१४.२)
When all the desires have dissolved, wealth, friends,
scriptures, knowledge and sensual satisfaction have
no meaning.(14.2)
साक्षी रूप में जाना मैंने,
परमात्मा या ईश्वर को जब से|
हो निरासक्त मोक्ष,
बंधन से, चिंता मुक्त मोक्ष इच्छा से||(१४.३)
Knowing the God or Lord as witness, I have
become indifferent to liberation and bondage
and have become free from desire of liberation.(14.3)
इच्छारहित है अंतस
लेकिन स्वेच्छाचारी मत्त के जैसा|
ऐसे उन्मत्त है ज्ञानी
जन को, पहचाने ज्ञानी उस जैसा||(१४.४)
The state of absence of desire inside and
carefree from outside can be understood only
by a person in the state of similar
enlightenment.(14.4)
**चौदहवां अध्याय समाप्त**
...क्रमशः
....©कैलाश शर्मा