तेरहवां अध्याय (१३.५-१३.७) (with English connotation)
विश्राम, गति, शयन और कर्मों में, मेरा हानि लाभ न होता|
लौकिक व्यवहार में दंभ रहित मैं, आत्मानंद में
स्थिर होता||(१३.५)
I incur no loss or profit while resting, moving,
sleeping or working. Performing my worldly duties
without any ego, I exist in my Self pleasantly.(13.5)
हानि नहीं मेरी कुछ भी सोने से, कार्य सिद्धि
से लाभ न होता|
हर्ष विषाद का त्याग मैं कर के, स्थिर सब
स्थितियों में होता||(१३.६)
I do not suffer any loss by sleeping and do not get any benefit by performing activities. By renouncing happiness and sorrow, I remain
constant in all situations.(13.6)
है अनित्य सुख दुःख जीवन
में, आना जाना है क्रम से रहता|
शुभ व अशुभ का चिंतन
तज कर, खुश मैं हर स्थित में रहता||(१३.७)
Knowing that pleasure and pain are temporary and
come and go repeatedly. By renouncing the
thought of auspicious and inauspicious, I exist
pleasantly in all situations.(13.7)
**तेरहवां अध्याय समाप्त**
...क्रमशः
....©कैलाश शर्मा