चतुर्थ अध्याय (४.१-४.६)
(with English connotation)
(with English connotation)
अष्टावक्र कहते हैं :
Ashtavakr says :
आत्म तत्व को जो जन जाने, जग के भोगों को खेल
समझता|
जग के भोगों में लिप्त मूढ़ से, उस ज्ञानी जन की
क्या समता||(४.१)
The wise man, who knows Self, understands the
enjoyment of the world as sport and he cannot be
compared to the deluded person who is bearing
the burden of the world.(4.1)
जिस पद को पाने की इच्छा में, इन्द्रादि देव दीन
बन जाते|
उस पद पर स्थित हो कर भी, ज्ञानी जन न किंचित
हर्षाते||(४.२)
Even after achieving the state, which Indra etc.
yearn for, the wise man does not feel any joy.(4.2)
आत्म तत्व का ज्ञान जो रखता, पाप पुण्य से उसका
क्या नाता|
धूम्र दिखाई देता नभ में सबको, उसका कब है आकाश
से नाता||(४.३)
The wise man knowing Self
remains unattached with
good or evil, just like smoke visible in the sky but
not a part of the sky.(4.3)
यह सब विश्व आत्मा उसकी, है जान गया जो ज्ञानी
इसको|
वर्त्तमान में स्व-इच्छा से, रहने से कौन रोक
सकता उसको||(४.४)
Who can prevent from living in present as per his
wishes to the wise man, who has perceived the
whole world as part of his Self.(4.4)
चतुर्वर्ग के सब प्राणी जन में, और ब्रह्म से
तृण तक सृष्टि में|
त्याग की इच्छा और अनिच्छा, है केवल आत्मा के ज्ञानी
में||(४.५)
From Brahma to the grass and among all four
categories of beings, the only person who knows
Self can be devoid of desire or
aversion.(4.5)
अद्वैत है आत्मा ईश्वर जग की, जान है पाता इसको
कोई|
और जान लेता है जो यह, रहता उसे न फिर भय
कोई||(४.६)
Rare is the person who knows the Self as One
and Master of the world, and who knows this
is not afraid of anything in the world.(4.6)
चतुर्थ अध्याय समाप्त
....क्रमशः
....©कैलाश शर्मा
आत्म तत्व ही जानने योग्य है..सुंदर ज्ञान गंगा..
ReplyDeleteअष्टावक्र गीता के तेरहवीं कड़ी का बहुत सुन्दर भाव पद्यानुवाद।।
ReplyDeleteआत्म तत्व जो जाना तो तर गया ... कबीर दास जी ने भी सही कहा है...
आतम ज्ञान बिन सब सूना, क्या मथुरा क्या काशी।
घर में वस्तु धरी नहीं सूझै, बाहर खोजत जासी।।
बहुत ही सुंदर भाव कविता रावत जी के उदहारण से भी शत् प्रति शत् सहमत हूँ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteआशीर्वाद
ReplyDeleteसुंदर ज्ञानवर्धक
आत्म तत्व का ज्ञान जो रखता, पाप पुण्य से उसका क्या नाता|
ReplyDeleteधूम्र दिखाई देता नभ में सबको, उसका कब है आकाश से नाता|
मन प्रसन्न हो जाता है आपकी इन पोस्ट को पढ़कर !!