मोह लोभ से मुक्त है, जब अंतर्मन होय।
ईश भक्ति के नीर से, पूरित घट तब होय।।(१)
अपने कर्म न देखते, देत नियति को दोष।
कालिख छू कालिख लगे, कालिख का क्या दोष।।(२)
कालिख छू कालिख लगे, कालिख का क्या दोष।।(२)
जन्म न दुख न मृत्यु सुख, केवल मन की सोच।
जीवन का यह चक्र है, आगे बढ़ मत सोच।।(३)
जीवन का यह चक्र है, आगे बढ़ मत सोच।।(३)
मन की बात न मन सुने, मन ही है पछताय।
मन से मन की जीत है, मन ही देय हराय।।(४)
मन से मन की जीत है, मन ही देय हराय।।(४)
तेरा मेरा करन में, जीवन दिया बिताय।
अंत समय जब आत है, सब पीछे रह जाय।।(५)
अपने दुख से सब दुखी, दूजों का दुख देख।
अपना दुख कुछ भी नहीं, उनके दुख को देख।।(६)
अपना दुख कुछ भी नहीं, उनके दुख को देख।।(६)
चलते कब हैं साथ में, दिन होते उड़ जाय।
सपने सच होते कहाँ, व्यर्थ हमें भरमाय।।(7)
सपने सच होते कहाँ, व्यर्थ हमें भरमाय।।(7)
...कैलाश शर्मा