Sunday, 12 July 2015

दोहे

मोह लोभ से मुक्त हैजब अंतर्मन होय।
ईश भक्ति के नीर सेपूरित घट तब होय।।(१)

अपने कर्म न देखतेदेत नियति को दोष।
कालिख छू कालिख लगेकालिख का क्या दोष।।(२)

जन्म न दुख न मृत्यु सुखकेवल मन की सोच।
जीवन का यह चक्र हैआगे बढ़ मत सोच।।(३)

मन की बात न मन सुनेमन ही है पछताय।
मन से मन की जीत हैमन ही देय हराय।।(४)

तेरा मेरा करन मेंजीवन दिया बिताय।
अंत समय जब आत हैसब पीछे रह जाय।।(५)

अपने दुख से सब दुखीदूजों का दुख देख।
अपना दुख कुछ भी नहींउनके दुख को देख।।(६)

चलते कब हैं साथ मेंदिन होते उड़ जाय।
सपने सच होते कहाँव्यर्थ हमें भरमाय।।(7)

...कैलाश शर्मा