आध्यात्मिक
विकास की
पर्वतों
की कंदराओं में
नदियों
के किनारे
गुरु
के सामीप्य में,
नहीं
कभी झांकते
अपने
अंतर्मन में,
नहीं
करते प्रारंभ यात्रा
अपने अन्दर से.
होती
यात्रा प्रारंभ
जब
अन्दर से बाहर,
होते
समर्थ खोजने में
सार
स्व-अस्तित्व का.
अंतस
का प्रकाश
देता
एक नव ज्योति
एक नव
दृष्टि
देखने
को बाह्य जगत
और कर
पाते सुगमता से
आत्मसात
एक वृहद सत्य
स्व-अनुभूति
में.
...कैलाश शर्मा