अष्टावक्र गीता का बोधगम्य हिंदी में भाव-पद्यानुवाद करने का एक प्रयास आपके समक्ष है. आशा है कि अपनी प्रतिक्रिया और सुझावों से इसे और बेहतर बनाने में अपने सहयोग से अनुग्रहीत करेंगे. अष्टावक्र गीता का हिंदी भाव-पद्यानुवाद क्रमशः प्रस्तुत करने का प्रयास रहेगा.
प्रथम अध्याय
जनक :
ज्ञान प्राप्त कैसे
करें, कौन मोक्ष का मार्ग,
कौन राह वैराग्य को,
बतलाओ वह मार्ग.(१.१)
अष्टावक्र :
अगर चाहते मुक्ति
तुम, विष विषयों को जान,
क्षमा दया संतोष सत,
सहज है अमृत पान.(१.२)
धरा न जल या अग्नि
हो, तुम न वायु आकाश,
केवल साक्षी मात्र
तू, तू चैतन्य प्रकाश.(१.३)
करके प्रथक शरीर से,
करे चित्त विश्राम,
प्राप्त करे सुख
शांति को, मुक्ति बने परिणाम.(१.४)
वर्ण, जाति से तुम
परे, सभी विषय से दूर,
निराकार, निर्लिप्त
बन, सुख पाओ भर पूर.(१.५)
....क्रमशः
....क्रमशः
...©कैलाश शर्मा
अष्टावक्र गीता का भावानुवाद पढ़कर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है..अद्भुत ग्रन्थ है यह..शुभकामनायें..
ReplyDeleteआपके इस उपक्रम की जितनी सराहना की जाए कम ही होगी ! सभी जिज्ञासु पाठकों के लिये अष्टावक्र गीता की इतनी सरस एवं सरल प्रस्तुति उपलब्ध कराने के लिये आपका बहुत-बहुत आभार !
ReplyDeleteसुंदर और सरल पद्यानुवाद... आभार
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत शर्मा जी।सुन्दर अनुवाद।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत शर्मा जी।सुन्दर अनुवाद।
ReplyDeleteसुन्दर काव्यानुवाद !
ReplyDeleteसुन्दर काव्यानुवाद !
ReplyDeleteसुन्दर काव्यानुवाद !
ReplyDeleteआभार..
ReplyDeleteAapke is prayaas ka swagat hai.....ye ek shramsadhy kary hai jise aapne saajha kiya.....aapki lekhni ko naman .....
ReplyDeleteSadar
यानि मुक्ती की राह केवल ध्यान या वैराग्य नहीं बल्कि सामान्य जीवन में क्षमा, दया आदि गुणों का पालन भी है! कभी कभी लगता है कि हमारे वेद उपानिषद माया और आत्मा की बातों में उलझ कर, सामान्य जीवन जीने वालों को सतगुणों के महत्व के बारे में बताना भूल जाते हैं. इस दृष्टि से सही जीवन जीने की राय देना अच्छा लगा.
ReplyDeleteजग में रहते हुए निर्लिप्त भाव रखना संभव तो नहीं हो पाता .. पर जो रख पाते हैं ऐसे विरले ही तो जीवन जीते हैं सुख से ... सुन्दर अनुवाद ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर नमस्ते
मैं समझ पा रहा हूँ लेकिन दो अनुरोध आपसे करना चाहूंगा आदरणीय शर्मा जी ! पहला ये कि बहुत संक्षिप्त व्याख्या भी साथ में मिलती जाए तो उत्तम होगा और दूसरा ये कि ये अध्याय आप मुझे सीधे मेल भी कर दीजियेगा ! लगातार पढ़ना चाहूंगा
ReplyDeleteयह रचना सुन्दरतम भी है रुचिकर है पठनीय है ।
ReplyDeleteलक्ष्य समझ में आ जाता है आकर्षक है रमणीय है ।
सभी मनुष्यो की कुंडलीनी गर्भ मे हि जाग्रत करादे और फिर मनुष्य रुपी जीव जो पहले से हि ईश्वर अंश है और अंदर चेतन अमल होते हि रहता है उसके बाद मरुभूमि पृथ्वी पर जन्म मिले तो क्या होगा ? संस्कार कर्म भक्ति और ज्ञानरुपी चैतन्य का अमल गर्भ मे संभव है ? जो पहले से हि आज और अभी इस गडि मे आप और मै का शरीर कुदरत का अंश है यह तो कोई भी मानेगा क्योकि हमारा शरीर पलता ही उसी के आधार पर, तो हम और आप और सारे जीव सावधान हो जाइए! जीव बता रहे है हम, हम जीव जो प्राणो के पुंज को बोलते है जो सत्य मे हमारा स्वरुप है। प्राण है तो जहान है प्राण है तै संसार और संसार के सारे सगे औरे सबंधी, तो जीव को चहिए यह "प्रा ण" परमात्मा लगाएं और विश्वास रखे सच बता रहा हुँ : जगत बहोत छोटा हो जाएगा, संसार स्वप्न और परमात्मा का एक साधारण खेल, लिला प्रतीत होने लगेगा जीसमै शंका का कोई स्थान नहि धैर्य रखे। हे भारत के निवासी जन्म भूमि पर गर्व हो तो होश मे आईए और अपना आत्म कल्याण अपने प्राणो के पुंज रुपी जीव के जीवन का अवसर व्यर्थ न गवाएं कुछ कीजीए माँ भारत की जन्म भूमि की लाज रखे और अपने पिता पारब्रह्म परमेश्वर परमात्मा को समर्पित हो जाएं। ऐसै अवसर बार बार नहि मिलते धन्यवाद जय सत्त चित्त आनंद हमारे सद्गुरुवर नमो नम: प्राणो के पुंज को मस्तिषक मे ले जाएं मोक्ष द्वार पर आत्म कल्याण होगा जीसमे फ्रि ओफर(उपलब्धि) पहले से हि अटेच(जुडा हुवा) है, जगत कल्याण भी और जन्मो जन्म की अतृप्तीओं से मृक्ति। धन्यवाद निर्विवाद राम(प्राण) राम(प्राण) शरीरमे भरीए भरते हि रहे फिर जाहि विधि(विधाता) राखे राम(प्राण) ताहि(परमात्मामे समर्पीत जीव) विधि रहिएं ओम सद्गुरुवे वर नम:
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