राज्य मिले या
भिक्षुक हो वह, योगी विकल्प रहित है रहता|
लाभ हानि, वन या
समाज में, ज्ञानी को सब है सम रहता||(१८.११)
The kingdom of heaven or beggary, profit or
loss,
living in forest or society, all these make
no
difference to the Yogi whose nature is to
be free
from distinctions.(18.11)
क्या है किया और
क्या करना, इन द्वंद्वों से मुक्त है रहता|
धर्म है क्या, क्या
अर्थ काम है, ज्ञानी नहीं प्रयोजन रखता||(१८.१२)
There is no religion, no wealth and no
sensuality
for the Yogi who is free from conflict of what he
has already done and what is yet to be
done.(18.12)
न उसका है कर्तव्य
कर्म को, न ही अनुराग किसी से होता|
जो भी मिला रहा खुश
उससे, ऐसा जन ही योगी है होता||(१८.१३)
There is nothing required to be done nor any attachment in the heart of the Yogi. He is happy
with
whatever he gets in life.(18.13)
कहाँ मोह है, कहाँ
ये जग है, कहाँ मुक्ति या ध्यान है होता|
इन सब से वह मुक्त
है योगी, जिसको आत्मज्ञान है होता||(१८.१४)
There is no attachment, world, meditation
on that
and liberation to the Yogi, who is
established in
Self and is free from all these.(18.14)
जिसने है इस जग को
देखा, जाने वह यह सत्य नहीं है|
जो वासना रहित जन
होता, दृश्यमान भी विश्व नहीं है||(१८.१५)
One who sees this world knows definitely
that this
world is not real, but desire-less one even
while
seeing this world does not see it.(18.15)
....© कैलाश शर्मा