Tuesday, 24 January 2017

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (अड़तीसवीं कड़ी)

                 सत्रहवां अध्याय (१७.१६-१७.२०)                                                                                (With English connotation)
जो आसक्तिहीन पुरुष होता है, न हिंसा या करुणा होती|
न आश्चर्य या क्षोभ है करता, न अहंकार, कातरता होती||(१७.१६)

One who is unattached to the world, does not
possess violence or compassion, wonder or
confusion and pride or submissiveness.(17.16)

जीवन्मुक्त व्यक्ति जो होता, मोह, द्वेष न विषयों से रखता|
प्राप्त अप्राप्त है जो किस्मत से, उसमें सदैव ही है सम रहता||(१७.१७)

One who is liberated is not attached or averse to
senses. Hence, he maintains equanimity in his achievement and failure both.(17.17)

समाधान, संदेह परे वह, हित या अहित न चिंतित करता|
शून्य चित्त वाला वह ज्ञानी, स्व-आत्मानंद में स्थित रहता||(१७.१८)

One with empty mind is beyond doubts and their
solutions, does not think about good or bad and
remains established in the bliss of Self.(17.18)

द्रश्य जगत को सत्य न माने, परे अहंकार, आसक्ति से रहता|     
सब इच्छाओं से रहित है होकर, करते हुए भी कुछ न करता||(१७.१९)

One who is free from pride and attachment and
does not perceive this world as real, being free
from all desires, even while doing does not do
anything.(17.19)

विगलित हुआ मोह है जिसका, मुक्त स्वप्न, जड़ता से रहता|
परित्याग कर सभी कामना, आत्मानंद वह प्राप्त है करता||(१७.२०)

One, who has dissolved attachment to the mind,
is free from delusion, dream, inertia and
desires, remains established in Self.(17.20)


               **सत्रहवां अध्याय समाप्त**
                                                     ...क्रमशः

....© कैलाश शर्मा